Book Title: Supatra Kupatra Charcha Author(s): Ambikadutta Oza Publisher: Aadinath Jain S M Sangh View full book textPage 7
________________ (5) प्रतिकूल है। इस ग्रन्थ का खण्डन समर्थ जैनाचार्य पूज्य श्री जवाहिरलालजी महाराज ने सद्धर्म मण्डन नामक ग्रन्थ से किया है जिसमें शास्त्रों के मूलपाठ देकर भीखणजी की उक्तियों को शास्त्र विरुद्ध सिद्ध किया है तथा अनुकम्पा विचार नामक पुस्तक में पूज्य श्री ने ढालों में ही भीखणजी की ढालों का खण्डन किया है। वे दोनों पुस्तकें प्रकाशित हैं। विशेष बातें उन ग्रन्थों में लिखी जा चुकी हैं। अतः यहां उन्हें लिखने की आवश्यकता नहीं है। तेरह पन्थी अपने साधुओं के सिवाय समस्त प्राणियों को कुपात्र मान कर उनके दान, सम्मान, विनय, उपकार आदि का निषेध किया करते हैं। उनको देने में एकान्त पाप बताते हैं। जिससे गृहस्थ जीवन में माता-पिता आदि गुरुजन का विनय करना, उनकी सेवा शुश्रूषा करना तथा दीन दुःखी और आर्तप्राणी की रक्षा करना आदि मानव धर्म एवं नीति धर्म को एकान्त पाप ठहराते हैं। ___ अंधे, लूले, लंगड़े, अपंग अपाहिज, प्रकृति के प्रकोप से पीड़ित, राजनैतिक कारण से त्रस्त प्राणियों की किसी प्रकार सहायता करना, स्कूल कॉलेज में छात्रों को ज्ञान देने में सहायता करना, अस्पतालों में रोगियों के दुःख दर्द मिटाने में सहायता करना आदि कार्यो में एकान्त पाप मानते हैं। इन कार्यो में एकान्त पाप ठहराने से गृहस्थ जीवन में बड़ी भारी दुर्व्यवस्था और अशांति उत्पन्न हो रही है। परोपकारवृत्ति और विनयभावना का तो प्रायः लोप सा हो रहा है। लोगPage Navigation
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