Book Title: Sunil Prakrit Samagra
Author(s): Udaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 392
________________ इअ सुणिऊण णिराहारं पडिगच्छंतेण आइरिएण णिमित्तणाणेण सम्म णादं- इम्मम्मि उत्तरभारधे बारसबरिस-पजंतं भीसणं दुब्भिक्खं होहिदि... एवं चिंतेंतो सो मणिठाणं आगदो। संघं च एवं भणदि भो संजमाराहगा भव्ववरपुंडरीया! सुणह, इमम्मि उत्तरावह-खंडम्मि बारह वरिस-पजंतं अइभीसणं दुब्भिक्खं होहिदि। धण-धण्णेण संपण्णो इमो देसो दुक्कालगसिओ होहिदि। अणावुट्ठि पहावेण सयलजीवसमूहा खुहातण्हाउरा,दीण- दुहिदा होहिंति। धम्मणिव्वहणं,संजमपरिपालणं च असंभवं होहिजइ। किमहियं, संजमाराहगाणं इणं देसो महाकट्ठकरो भट्टकरो य होहिजइ। एरिसे देसे संघस्स णिवासो जोग्गो णत्थि। तदा एदम्मि देसादो संघस्स दक्खिणदिसाए विहारं होहिदि। इणमो समायारो जदा सावगेहिं सुदो तदा ते दुक्खिदा जादा। तहा विणएण सणिवेदणं एवं भाणिदं-भयवं। इहेव तिट्ठध, एत्थ जेव णिवसध। विहारं मा कुणध। अम्हे सव्वे समत्था। दुब्भिक्ख-काले वि संघस्स सव्वपयारेण णिव्वहणं करिस्सामो।अम्हाणं कोढारा धण-धण्णेण परिपुण्णा संति।किवं कुणध, अस्सिं खेत्ते चिट्ठह। ____ आयरिओ उच्चदि- साहु, तुम्हे सव्वे समत्था किन्तु दुब्भिक्खं अइदुक्करं होहिदि। जे एत्थ णिवसेहिंति ते धम्मभट्टा, मग्गभट्टा य होहिंति। अदो अम्हे दक्खिणदिसाए विहरामो। ५ भद्दबाहुणो समाही : तं पच्छा सुदकेवलीदेवेण संघेण सह दक्षिणाभिमुहं विहरदि।सावगाणं अग्गहवसा थूलभद्दादि मुणिगणा आयरिय-आणं अवगणिय तत्थ उत्तरावहे एव परिवसिउं पयत्ता। उत्तरापथ में दुर्भिक्ष : अन्य कोई दिन श्री भद्रबाहु स्वामी आहार के प्रयोजन से एक श्रावक के घर के आँगन में प्रविष्ट हुए। वहाँ झूले में झूलते हुए शिशु को 'जाओ, जाओ, जाओ' इस प्रकार बोलते हुए देखा। तब निमित्तज्ञानी आचार्य कुछ चिंतन करके पुनः पूछते हैं- कितने काल पर्यन्त, कितने काल पर्यन्त, कितने काल पर्यन्त। शिशु ने कहा बारह वर्ष पर्यन्त, बारह वर्ष पर्यन्त, बारह वर्ष पर्यन्त। इस प्रकार सुनकर निराहार लौटते हुए आचार्य ने अपने निमित्तज्ञान से यह स्पष्ट जाना कि-इस उत्तरभारत में बारह वर्ष तक दुष्कर दुर्भिक्ष होगा। इस प्रकार सोचते हुए वे मुनियों के स्थान पर आ गये। सम्पूर्ण संघ को बुलाकर उन्होंने इस प्रकार कहा हे संयम आराधकों भव्यवर पुण्डरीकों! सुनो, इस उत्तरापथ खण्ड में (उत्तरभारत में) बारह वर्ष तक अतिभीषण दुर्भिक्ष होगा। धन-धान्य से सम्पन्न यह देश शून्य हो 390 :: सुनील प्राकृत समग्र

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