Book Title: Sulsa Charitam Author(s): Harishankar Kalidas Shastri Publisher: Jain Vidya Shala View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते कारण माटे पंमित पुरुषोए म्हारे विषे कृपा करीने या काव्यने “कोई स्था । नके नूल होय तो” सुधारीज से, पण गुण दोष कहेवामां मूगा अर्थात् गुण दोष नहिं कहि शकनारा श्रने संसार रूप कूवामा उत्पन्न थएला देडका सरखा, खल हवे कवि पोते करेला ग्रंथनी अंदर थएली चूसनी विद्वान् पुरुषोनी पासे माफी मागे . कृत्वा प्रसादं मयि सङनैस्तत्, संशोधनीयं 'किल कार्यमेतत् ॥ कार्यावहेला गुणदोषमूर्नवांधुनेकैः खेलबाललोकैः ॥ १३ ॥ हवे कवि पोतानुं अज्ञानपणुं दर्शावे . वेदःप्रमाणागमनाटकाज्ञः, साहित्यहीनो ने च नीतिवेत्ता॥ "निलक्षणोऽदं निरलंकृतिः स्यां, दास्यास्पदं काव्यचिकीः कवीनाम्॥१॥ हा एवा मूर्ख मनुष्योए अवज्ञा ( करवी होय तो ) करवी. कारण के, तेथी मने हरकत || नथी, परंतु अवज्ञा करवी ए मूर्खनो खजाव . ॥ १३ ॥ नंदी प्रमुख बंद (पिंगल) For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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