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पाच
ऋग्वेद को सूक्तिया ५. सरस्वती (ज्ञान-शक्ति) हम सब को पवित्र करने वाली है ।
६ सरस्वती (ज्ञानशक्ति) सत्य को प्रेरित एव उद्घाटित करती है, और
सद्बुद्धि वाले पुरुषो को यथावसर योग्य कर्मो की चेतना देती है। ७. अग्नि (मनुष्य की तेज शक्ति) अग्नि (संघर्ष) से ही प्रज्ज्वलित होती
८. ऊधम मचाने वाले दुर्जनो की डाहभरी निन्दा हमे कभी न छू सके ।
६. वीर पुरुष कभी नष्ट नहीं होता।
१०. जल के भीतर अमृत है, औषधि है।
११.
जिस तरह चिडियाँ अपने घोसले की ओर दौडती हैं, उसी तरह हमारी क्रोधरहित प्रशान्त बुद्धियां समृद्ध जीवन की प्राप्ति के लिए दौड रही हैं।
१२ हमारे ऊपर का, बीच का और नीचे का पाश खोल दो, नष्ट कर दो,
ताकि हम ससार मे सुख से जीवित रह सकें।
१३ (कर्मानुष्ठान के पश्चात्) हम सब साथी परस्पर एक दूसरे के प्रश
सक हो। १४. हम बडे (गुणो से महान्), छोटे (गुणो से न्यून), युवा, और वृद्ध
सभी गुणीजनो को नमस्कार करते है।
७. महान्तो-गुणरधिका । ८ अर्भका-गुणन्यूना । ६. माशिना-वयसा व्याप्ता वृद्धा।