Book Title: Suktavali yane Suktmuktavali Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 3
________________ प्रस्तावना. श्री सर्वज्ञ जाषित धर्ममां जीवनी पांच गति कही बे. तेमां मनुष्य, देवता, तिर्यंच ने नारकी, ए चार गति संसारमां चमरूप : अने पांचमी मोक्षगति ए बरी ठाम बेसवाने अनंतानंत सुखनुं धाम बे. ए पांचमी मोक्ष गतिए जवा माटे चार गतिमांनी फक्त एक मनुष्यगतिज नीसरणीरूप बे. - र्थात् मनुष्यगति सिवाय बीजी त्रण देवता, तीर्यंच ने नारकीनी गतिमांथी मोक्षमां जवातुं नथी; मात्र मनुष्यज मोक्ष मे - लवी शके बे. देवतानी गतिमां अपरंपार सुख साहेबी बे तथापि देवता पण मनुष्यगतिमां याववा इछे छे, केमके ज्यांथी मोहसुख मली शके बे. माटे चार गतिमां उत्तम मनुष्यगति पाम्या पढी पातुं जव मण न थाय ने परम पद एटले मोक्षसुख मले ए सारू मनुष्यनुं शुं करतव्य बे ते अवश्य जाणवुं ऊचित . अने ते जाणीने ते प्रमाणे वर्त्तन करवाथी मनुष्यजवनी सफलता थाय बे. तेटला माटे सर्वज्ञ जिनवचनानुसार बाल जीवोना उपकारार्थे श्री तपागच्छाधिपती श्री विजयप्रनसूरीना पाटे उदयाचल पर्वतने विषे प्रगट यता सूर्य समान श्री विजयरत्न - सूरीना राज्यने विषे श्रयेला श्री कनक विमल नामना सुगुरूना लघु शिष्य केसर विमल नामानिध पंमिते या सूक्तावली याने सूक्तमुक्तावली एटले मनुष्यना कंठनेविषे रहेली मोतीनी माला समान शोजायमान सारी युक्तिवालो या ग्रंथ मनुष्यमात्रनी शोजाने अधिक करवा माटे विक्रम संवत् १७५४नी सालमां रच्योवे. मनुष्यजवनी सार्थकतानुं करतव्य धर्म, अर्थ, काम श्रने मोक्ष, ए चार नागमां समायेलुं बे. ए चारे जागनुं यथाविधि स्वरूप श्र ग्रंथमां लोकनाषा करी पद्यबंध दर्शाववामां श्राव्युं बे. तेना मुख्य विभाग १ तत्त्वज्ञान एटले शुद्ध देव, शुद्ध गुरु, अने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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