Book Title: Sudarshan Charit
Author(s): Udaylal Kashliwal
Publisher: Hindi Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 47
________________ marmarwa rrrrrrrrrrrrrrrrrrawwanawwamirrrrr/ ४२ ] सुदर्शन-चरित। पारको पहुँच चुके हैं और दूसरोंको पहुँचाकर मोक्षका सुख देते हैं तथा जिन्होंने कामदेव-पदके धारी होकर कर्मोका नाश किया हैं; वे मुझे भी ऐसा पवित्र आशीर्वाद दें कि जिससे मैं शीलवतको बड़ी दृढ़ताके साथ धारण कर सकूँ। चौथा परिच्छेद । Singer - सुदर्शनका धर्म-श्रवण। . शीलरूपी समुद्रमें निमग्न और मोक्षको प्राप्त हुए सुदर्शन आदि. ____ महात्माओंको मैं नमस्कार करता हूँ, वे मुझे सुदृढ़ शील धमकी प्राप्ति करावें । किसीने जाकर राजासे कहा कि-महाराज, जिन नौकरोंको आपने सुदर्शनको मार आनेके लिए आज्ञा की थी, सुदर्शनने उनको मंत्रसे कील दिया-वे सब पत्थरकी तरह मृत्युस्थलपर कीले हुए खड़े हैं । सुनते ही राजाको बड़ा क्रोध आया । उसने तब और बहुतसे नौकरोंको सुदर्शनके मारडालनेको भेजा। उस यक्षने उन सबको भी पहलेकी तरह कील दिया। उनका कील देना भी जब राजाको मालूम हुआ तब वह क्रोधसे अधीर होकर स्वयं अपनी सेना लेकर सुदर्शनसे युद्ध करनेको पहुँचा । उस यक्षको भी भला तब कैसे चैन पड़ सकता था।

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