Book Title: Sudansana Chariyam
Author(s): Umangvijay Gani
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra Shah
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है कयकिच्चो व तुमं सर्व पि निएसि अप्पसमं ॥३५॥ सामि ! सुदुल्लहं तुम्ह दंसणं भावयति जे सुहयं । ते वि सिवसुर-16
सुक्खाण भाइणो नाह! जायंति ॥३६॥ पञ्चक्खो वि तुमं जिण! न दीससे कहवि भावरहिएहिं । अहवा किं कप्पतरू कयावि पिच्छंति निब्भग्गा? ॥३७॥ तुममच्छीहि न दीससि नाऽऽराहिज्जसि पभूयपूयाहिं । किंतु गुरुभत्तिराएण वयणपरिपालणेणं च ॥३८॥ रसवायखीणदेहा जे पयडनिहिं व तं अपिच्छंता । भमडंति जं वराया तं मण्णे नाह ! जम्मंधा
॥३९॥ मुत्तुं तुमं पि अण्णं जे के वि णमंति धम्मबुद्धीए । सबं पि सुवण्णमयं नियंति धत्तूरिया अहवा॥४०॥ सुहयं गुणाण | निलयं निजियतियलोयलच्छिवरसोहं । तुम्ह वयणारविंदं निएवि हरिसिज्जइ न को वा?॥४॥ विमलगुणरयणजलनिहि !
भवजलनिहिपडियतारणतरंड!। जम्मजरमरणवज्जियपयगय ! परमेसर ! नमो ते ॥४२॥ इय सुच्चयजिण ! देविंदणमियपय ! सुयगुणसुदंसणाइय! । सासयनिवाणसुहेहि कुण पसायं पसण्णच्छ ! ॥४३॥ थुणिऊण जिणवरिंदं अरिहंतसुसिद्धसूरिउज्झाए । साहू य भत्तिसहिया णमेवि भावेण रायमुया ॥४४॥ आलोइय दुच्चरियं मणवयकाएहि जं कयं पावं । काऊण कसायजयं इंदियइच्छानिरोहं च ॥४५॥ संसारम्मि अणंते अणंतजम्मेसु संसरंतेणं । जे के वि मए दुक्खे | निजोजिया ते खमावेमि ॥४६॥
तंजहा-पुढविजलजलणमारुयवणसइकाया विराहिया जीवा । जं मणवयकाएहिं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ॥४७॥ सुरनरतिरिनरयभवे जे के वि विराहिया मए जीवा । मणवायाकाएणं मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ॥४८॥ दंसणणाणचरित्ते पडिकूलं जं मए कहिं पि कयं । मणवायाकाएण य मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ॥४९॥ अभितरओ रागाइदोस दबाइयं
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