Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 02
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 310
________________ २८० ] सुबोध जैन पाठमाला-भाग २ १०. विरणय (विनय): (अभ्युत्थान =बडो के आने पर उठकर खड़ा होना आदि दश प्रकार की) विनय करता हुआ जीव ...... " करता है। ११. प्रावस्सए (आवश्यक): उभय काल उपयोग सहित दैवसिक रात्रिक प्रतिक्रमण करता हुआ जीव ........" करता है। १२ सीलव्वए (शील-व्रत) : लिए हुए (महाव्रत या अणुव्रत रूप) मूलगुण प्रत्याख्यान तथा (समिति-गुप्ति या गुणवत-शिक्षाबत अथवा नमस्कार सहित आदि रूप) उत्तग्गुण प्रत्याख्यान अतिचार रहित शुद्ध (निर्मल) पालता हुआ जीव करता है। १३. खरण लव (क्षरण लव): थोडा भी प्रमाद न करता हुअा (अर्थात् प्रतिक्षण वैराग्यभाव रखता हुआ, धर्म-शुक्ल ध्यान ध्याता हुआ तथा पार्त-रौद्र ध्यान वर्जना हुआ) जीव । करता है। १४. तव (तप) : एकान्तर, मास-मासक्षमण (तप) आदि विकृष्ट (बडी) तपश्चर्या करता हुआ जीव ........."करता है। १५. चियाए (त्याग) : (द्रव्य से गौचरी मे प्राधाकर्मी अादि आये हुए अशुद्ध आहार आदि को परिवता हुया तथा भाव से क्रोध आदि को त्यागता हुया और) द्रव्य से प्रासुक एपणीय आहार आदि तथा 'भाव'सें जान आदि सुपात्र को देता हुया जीव ........." करता है। १६. वेयावच्चे (वयावृत्य): (अरिहन्त वैयावृत्य आदि दश प्रकार की) वैयावृत्य करता हुआ जीव ........." करता है ।

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