Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ६
१२७
प्रमाद - नींद लेना, विषय प्रमाद - शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श इन पांच इन्द्रियों के विषयों में आसक्त होना, कषाय प्रमाद - क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषाय का सेवन करना, दयूत प्रमाद - जुआ खेलना और प्रत्युपेक्षणा प्रमाद - बाह्य और आभ्यन्तर वस्तु को देखने में आलस्य करना प्रत्युपेक्षणा प्रमाद कहलाता है ।
विवेचन - उन्माद - महामिथ्यात्व अथवा हित और अहित के विवेक को भूल जाना उन्माद है। । छह कारणों से जीव को उन्माद की प्राप्ति होती है। वे इस प्रकार हैं -
१. अरिहन्त भगवान् २. अरिहन्त प्रणीत श्रुत चारित्र रूप धर्म ३. आचार्य उपाध्याय महाराज ४. चतुर्विध संघ का अवर्णवाद कहता हुआ या उनकी अवज्ञा करता हुआ जीव उन्माद को प्राप्त होता, है। ५. निमित्त विशेष से कुपित देव से आक्रान्त हुआ जीव उन्माद को प्राप्त होता है। ६. मोहनीय कर्म के उदय से जीव को उन्माद की प्राप्ति होती है। . प्रमाद - विषय भोगों में आसक्त रहना, शुभ क्रिया में उद्यम तथा शुभ उपयोग का न होना प्रमाद है। इसके छह भेद हैं -
१. मद्य - शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन करना मद्य प्रमाद है। इससे शुभ परिणाम नष्ट होते हैं और अशुभ परिणाम पैदा होते हैं। शराब में जीवों की उत्पत्ति होने से जीव हिंसा का भी. महापाप लगता है। लज्जा, लक्ष्मी, बुद्धि, विवेक आदि का नाश तथा जीव हिंसा आदि मद्यपान के दोष प्रत्यक्षं ही दिखाई देते हैं तथा परलोक में यह प्रमाद दुर्गति में ले जाने वाला है।
२. निद्रा - जिसमें चेतना अस्पष्ट भाव को प्राप्त हो ऐसी सोने की क्रिया निद्रा है। अधिक निद्रालु जीव न ज्ञान का उपार्जन कर सकता है और न धन का ही। ज्ञान और धन दोनों के न होने से वह दोनों लोक में दुःख का भागी होता है। निद्रा में संयम न रखने से यह प्रमाद सदा बढ़ता रहता है।
३. विषय - पांच इन्द्रियों के विषय - शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श जनित प्रमाद विषय प्रमाद है। शब्द रूप आदि में आसक्त प्राणी विषावाद को प्राप्त होते हैं। इसलिये शब्दादि विषय कहे जाते हैं।
४. कषाय - क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषाय का सेवन करना प्रमाद है।
५. चूत प्रमाद - जुआ खेलना द्यूत प्रमाद है। जुए के बुरे परिणाम संसार में प्रसिद्ध हैं। जुआरी का कोई विश्वास नहीं करता है। वह अपना धन, धर्म, इहलोक, परलोक सब कुछ बिगाड़ देता है।
६. प्रत्युपेक्षणा प्रमाद - बाह्य और आभ्यन्तर वस्तु को देखने में आलस्य करना प्रत्युपेक्षणा प्रमाद है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से प्रत्युपेक्षणा चार प्रकार की है। ... (क) द्रव्य प्रत्युपेक्षणा - वस्त्र. पात्र आदि उपकरण और अशनादि आहार को देखना द्रव्य प्रत्युपेक्षणा है।
(ख).क्षेत्र प्रत्युपेक्षणा - कायोत्सर्ग, सोने, बैठने, स्थण्डिल, मार्ग तथा विहार आदि के स्थान को देखना क्षेत्र प्रत्युपेक्षणा है।
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