Book Title: Sthanang Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 580
________________ Tra म्यामागम आचागपाध्याययोगणे यथा पा व्युदयरस्थानानि पञ्च अच्युग्रहस्था. नानि च भवन्ति, नानि प्राद-~ मृलम्-मायरिय उवज्झायस्त णं गणंमि पंचवुरगदाणा पण्णता, तं जहा-आयरियउवझापणं गर्णनि आणं वा धारणं वा नो सम्म पउंजित्ता भरड १, आयरिय यज्झाय गं गणसि आहाराइणियाए किइकम्मं नो गुम्मं पउंजिना भवइ २, आयरिय उवज्झाए गणसि जे उत्तपनवजाए धाग्इ ने काले काले णो लम्समणुष्पवाइत्ता नवइ ३, आयरिय उवमा गणंति गिलाणसेहवेयावचं नो सम्ममभुष्ट्रिता भवड़, 2 आवरियउबज्झाए गणलि अणापुच्छ्यिचारी यावि हवइ. नो आपुन्छिय. चारी ५। आयरियउबज्झायरस णं गर्णसि पंच अवुरगहटाणा पण्णता, तं जहा-आयरिय उज्झाए गणमि आणं वा धारण वा सम्म पउंजित्ता भवइ, एवं आहाराइणियाए सम्म किइकम्न पउंजित्ता भवइ २, आयरिय उवज्झाए णं नणंसि जे सुयपज्जवजाए धारेइ ते काले काले सम्मं अणुप्पबाइत्ता भवइ ३, आयरिय उवज्झाए गणंसि गिलाणसेहरयावच्चं नम्नं अम्भुद्वित्ता भवइ ४, आयरियउवज्झाए गणसि आपुच्छियचारी यावि भवइ णो अणापुच्छियचारी ६॥ सू० १२ ॥ छाया-आचार्योपाध्यायस्य खलु गणे पञ्च व्युद्यहस्थानानि प्रजातानि, तद्यथा-आचार्योपाध्यायं खलु गणे आज्ञा वा धाग्णां वा नो सम्यक् प्रयोक्त भवति १, आचार्योपाध्यायं खलु गणे यथारानिकतया कृतिम नो सम्यक् प्रयोक्त भवति २, आचार्योपाध्यायं गणे यानि श्रुतपर्यवनातानि धारयति तानि काले काले नो सम्पर अनुपावाचगि भवति ३, आचार्योपाध्यायं गणे

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