Book Title: Sthanang Sutra Ppart 02
Author(s): Devchandra Maharaj
Publisher: Mundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh

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Page 425
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Kxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx उवओगादिसारा, कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । साहुक्कारफलवती, कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ॥२१९॥ उक्तार्थ छे. हैरण्यक-सोनाचांदी प्रमुखनी परीक्षा करनार पारेख अने खेडूत विगैरेनी जेम आ बुद्धि जाणवी. परिणाम-चिरकाल पर्यंत पूर्वापर पदार्थना अवलोकनथी उत्पन्न थयेल आत्मधर्म, ते प्रयोजन छ जेनु अथवा परिणाम छ प्रधान जेमां ते ४ पारिणामिकी बुद्धि. वळी अनुमान, कारणमात्र अने दृष्टांतोवडे साध्यने साधनारी, वयनी वृद्धिवडे पुष्ट थनारी तेमज अभ्युदय अने मोक्षना फळवाळी आ बुद्धि छे. कयु छ केअणुमाणहेउदिटुंत-साहिया वयविवागपरिणामा। हियनिस्सेसफलवई,बुद्धी परिणामिया नाम ।२२०। उतार्थ छे. *अभयकुमारादिनी जेम आ बुद्धि जाणवी. मनन करवू ते मति. तेमां समस्त विशेषनी अपेक्षा सिवाय निर्देश नहि करायेल एवा रूप विगरे सामान्य अर्थन 'अव'प्रथमथी ग्रहण (जाणवू) ते अवग्रह, तद्प मति ते अवग्रहमति. एवी रीते सर्वत्र जाणवू. विशेष ए के-ते ग्रहण करेल अर्थन विशेष आलोचन करवू ते इहा. आलोचित अर्थविशेषनो निश्चय ते अवाय अने निश्चित करेल अर्थविशेष- जे ( हृदयमां) अविच्युतिपणे धारी राखq ते धारणा. कयु छ के| सामन्नत्थावगहण-मोग्गहो भेयमग्गणमिहेहा। तस्सावगमोऽवाओ, अविच्चुई धारणा तस्स ॥२२॥ * चार प्रकारनी बुद्धि उपर दर्शावेला दृष्टांतो नंदीसूत्रनी टोकाथी जाणी लेवा. (xxxxxxxxxxxxXXXXXXXXXXXXXXXxxx) For Private and Personal Use Only

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