Book Title: Smarankala Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur View full book textPage 3
________________ प्रकाशकीय प्राकृत भारती सस्थान का चौथा प्रकाशन - 'स्मरण कला' प्रस्तुत है। पाश्चात्य मनोविज्ञान के आधार पर स्मृति को विकसित करने हेतु कई पुस्तके प्रकाशित हुई हैं। प्रस्तुत प्रकाशन मे स्मृति विकास हेतु भारतीय परम्परा के अवधान सिद्धान्त पर प्रारम्भिक प्रकाश डाला गया है । आज भी, विशेष रूप से जैन परम्परा के कई अनुयायी अवधान प्रणाली के आधार पर विकसित स्मृति प्रदर्शित करते है। इन व्यक्तियो मे एक साथ सो प्रश्न पूछे जा सकते हैं, जिन्हे वे उसी प्रकार पुन उद्धृत कर देते है । इससे यह ज्ञात होता है कि स्मृति का कितना असाधारण विकास हो चुका है । ऐसे ही एक व्यक्ति धीरजभाई टोकरसी हैं । इन्हे प्राकृत भारती सस्थान की ओर से स्मरण कला पर स्वलिखित गुजराती पुस्तक का हिन्दी मे अनुवाद करवाने और उसका इस संस्थान की ओर से प्रकाशन करने का अनुरोध किया। उनकी स्वीकृति प्राप्त करने मे राजस्थान साहित्य के प्रमुख विद्वान् श्री अगरचन्द जी नाहटा का विशेष प्रयास रहा। हिन्दी अनुवाद श्री मोहनलाल मुनि “शार्दूल" ने किया जो स्वय भी लेखक की तरह शतावधानी हैं। लेखक एव अनुवादक के प्रति सस्थान बहुत ही आभारी है क्योकि उनके प्रयासो के फलस्वरूप स्मृति-कला सम्बन्धी परम्परागत भारतीय सिद्धान्त विशेष रूप से हिन्दी-जगत में प्रकाश में आये हैं । डॉ सिव्हा (जो राजस्थान विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष हैं) ने इस पुस्तक की भूमिका लिखी है । इस सम्बन्ध मे उनको निवेदन इस आधार पर किया गया था कि पाश्चात्य मनोविज्ञान के विशेषज्ञ के रूप मे पराम्परागत स्मृति-कला के सिद्धान्न जो इस पुस्तक मे प्रस्तुत हैं, उस पर उनके विचार-प्राप्त हो सकें। पुस्तक प्रकाशन मे डॉ बद्रीप्रसाद पचोली, सस्थापक, अर्चना प्रकाशन, अजमेर, महोपाध्याय विनयमागर, संयुक्त सचिव, राजस्थान प्राकृत भारती सस्थान, जयपुर और श्री पारस भसाली के प्रति भी सस्थान आभारी है। देवेन्द्रराज मेहता सचिवPage Navigation
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