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सिरि भूवलय
शासनाध्यक्ष थे, जानकारी मिलती है। इस कारण भी और भी अनेक कारणों से कवि का काल ईसाबाद लगभग ६८० रहा होगा कह सकते हैं। मूल प्रति ___कवि बंगलोर के समीप लगभग ३० कि.मी. की दूरी उत्तर में स्थित नंदीदुर्ग में तपस्या कर सिध्द हुए, ऐसी जानकारी स्वयं देते हैं। इनके जन्मस्थली “यलव" अथवा “यलवळ्ळि" नंदीदुर्ग पहाड की उँचाई पर ही स्थित है । इनका जन्म कन्नड कुल में हुआ है और उन्होंने अपने ग्रंथ को कन्नड में ही रचा हैं ।
इस पुस्तक में कोई भी भाषा लिपि नहीं है । केवल अंक ही हैं। हमें प्राप्त प्रति बहुत ही प्राचीन हाथ से बने कागज पर लिखी हुई है । इसको प्रतिलिपि बनवा कर कितने वर्ष बीत गए हैं इसका कोई अंदाज नहीं लगा सकते हैं । कुमुदेन्दु ने अपने ग्रंथ को ताड पत्र पर लिखा -
सिव पारवतीशन गणितद श्री कंठ। दवनिय ताळेयोलेगळ सुविशाल पत्रदक्षरद भूवलयके। सविस्तार काव्यकेन्न नमक
ऐसा कहते हैं। इसका पता हमें नहीं है।
आगे मुद्रित सांचा सिरि भूवलय के प्रथम पृष्ठ का है। इस प्रकार के १२९३ चौकोर खानों को एक रीति से पढ चुका हूँ। चक्र इस प्रकार से हैं
___ इस चौकोरो में बाँयें से दायें २७ खाने, इसी प्रकार उपर से नीचे २७ खाने । कुल इस एक चक्र में ७२९ चौकोर । इन एक-एक खानों मे एकएक अंक लिखा गया है । यह अंक १ से लेकर ६४ तक हैं। ६४ से अधिक अंक किसी भी चक्र में नहीं है। इसमे कोई भी अक्षर नहीं है ।
यहाँ एक-एक खानों में स्थित १ से लेकर ६४ तक लिखे गए अंक संकेतों का परिशीलन करने के लिए पाणिनि वीरसेन का शिक्षाधवल टीका, जयधवल टीका, राजवार्तिका, वार्तिकालंकार शब्दानुशासनादि ग्रंथ, शैव-शाक्तेय तंत्र ग्रंथ, बौध्द ग्रंथ आदि का परिशीलन कर एक निर्णय लिया गया । आखिर में
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