Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 76
________________ (७२) श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला. ॥ संतई पप्पाईया, अपज्जवसियावि य | ठिई पहुच साईया, सपज्जवसियाविय ॥ पलिओवमस्स भागो, असंखेज्जइमो भवे । आउठिई खहयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ असंखभाग पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिया । पुचकोडीपुहत्तेणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ठिई खयराणं, अन्तरे तेसिमे भवे । कालं अणन्तकोसं, मुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं, जहन्नयं ॥ refसं वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ मणुया दुविहया उते मे कित्तयओ सुण । संमुच्छिमा य मणुया, गन्भक्कन्तिया तहा ।। भवन्तिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया । कम्मअकम्मभूमा य, अन्तरद्दीवया तहा पन्नरस तीसविहा, भेया अहवीसई । संखा उ कम्मसो तेसिं, इइ एसा वियहिया ।। मुच्छिमाण एसेव, भेओ होइ वियाहिओ । लोगस्स पगदेसम्मि ते सव्वे विवियाहिया ।। संत पप्पणाईया, अपज्जवसियाविय । ठिडं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ पलिओवमाउ तिष्णवि, असंखेज्जइमो भवे । आउट्टिई मणुयणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ पलिओ माई तिष्णि उ, उक्कोसेण उ साहिया । पुवको डिपुहत्तेणं, अन्तीमुहुत्तं जहन्निया || काठई मणुयाणं, अन्तरं तेसिमं भवे । अणन्तकालमुकोर्स, अन्तोमुद्दत्तं जहन्नयं ॥ २०९ ॥ सिं, वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो || २०२ ॥ देवा विहा वृत्ता, ते मे कित्तयओ गुण । भोमिज्जवाणमन्तरजोड्सवेमाणिया तहा ।। २०३॥ दसहा उ भवणवासी, अट्ठहा वणचारिणो ! पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥ २०४ ॥ असुरा नागसुवण्णा, विज्जू अग्गी वियाहिया । दीवोदहिदिसा वाया, धणिया भवणवासिणो ॥ पिसायभूया जक्खा य, रवरूसा किन्नरा किंपुरिसा । महोरगा य गन्धवा, अट्ठविहा वाणमन्तरा || १९९ ॥ २०० || चन्दा राय नक्खत्ता, गहा तारागणा तहा । ठिया विचारिणो चेव, पंचहा जोइसालया || मज्झिमा मज्झिमा चेव, मज्झिमा उवरिमा तहा । उवरमा हेट्टिमा चेव, उवरिमा मज्झिमा तहा ॥ १८९ ॥ १९० ॥ १९९ ॥ १९२॥ ११३ ॥ १९४ ॥ माणिया उजे देवा, दुविहा ते वियाहिया । कप्पोवगा य बोधव्वा, कप्पाईया तव य ॥ कप्पोवग्गा बारसहा, सोहम्मीसाणगा तहा | सणं कुमारमाहिन्द बम्भलोगा य सन्तगा ।। महासुका सहस्सारा, आणया पाणया तहा । आरणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोमा सुरा ।। कप्पाईया उ जे देवा, दुविहा ते विद्याहिया । गेविज्जाणुत्तरा चेव, गेविज्जा नवविहा तहिं हेट्टिमा हेट्ठिमा चैव, हेट्ठिमा मज्झिमा तहा । हेट्ठिमा उवरिमा चेत्र, मज्झिमा हेडिमा तहा ॥ ॥ १९५ ॥ १९६ ॥ १९७ ॥ १९८ ॥ ॥ २०५ ॥ ॥ २०६ ॥ ॥ २०७ ॥ २०८ ॥ २०९ ।। २१० ॥ २११ ॥ २१२ ॥ ।। २१३ ॥ वरमा उवरिमा चेव, इय गेविज्जगा मुरा। विजया वेजयन्ता य, जयन्ता अपराजिया || २१४ ॥ सव्वत्थसिद्धगा चेव, पंचहाणुत्तरा सुरा । इय वेमाणिया एएणेगहा एवमायओ ।। २१५ ।। लोगस्स गदेसम्म ते सवेवि वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउन्विहं ।। २१६ ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य। ठि पहुच साइया, सपज्जवसियावि य ।। २१७ ॥

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