Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

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Page 237
________________ सिद्धांतरहस्य ॥२२९॥ समुद्घात स्वरुप ॥२२९॥ आश्रयी उ० थी चार वार संभवे. केटलाकने भूत अने भविष्य आश्रयी मुद्दल पण न होय. केवली समु. मनुष्य | सिवाय अन्य जीवोए भूतकालमां करेल नथी. भविष्यकाल आश्रयी पण उ० थी कोइकने एकवार संभवे, | मनुष्य आश्रयी कोइकने अतीतकाले एक थयेल होय छे अर्थात् केवलि समु० थी उत्तीर्ण थयेला आश्रयी जाणवू. अने भविष्य आश्रयी पण एकज घटी शके. पहेलो समुद्घात, असाता वेदनीय कर्मना आश्रयवालो छे. बीजो समु०, कषाय मोहनीय कर्मना आश्रयवालो छे. त्रीजो स०, शेष अंतर्मुहर्त आयुष्य कर्मना आश्रयवालो छे. | चोथो, पांचमो अने छठ्ठो एत्रण समुद्घात, नाम कर्मना आश्रयवाला छ अने सातमो समु०, वेदनीय नाम अने गोत्र कर्मना आश्रयवालो छे. ए सात समुद्घातो जीवोना कह्या. हवे अजीव-समुद्घात कह छे:-अचित्त महा स्कंधरुप अजीवथी थयेल जे समुद्घात ते अजीवसमु० कहेवाय छे. ते पुदगलना विश्रसा-परिणामथी (स्वभावथी ) थाय छे अने ते सर्वलोक व्यापी थाय छे. तेनो काल केवलि समुद्घातनी जेम आठ समयनो छे अर्थात् आठ समयमां समाप्त थाय छे. इति समुद्घात स्वरुप समाप्त. अथ पांच ज्ञान- स्वरुप-ज्ञान पांच प्रकारना छेः-१ मतिज्ञान, २ श्रुतज्ञान, ३ अवधिज्ञान, ४ मनः पर्यवज्ञान अने ५ केवलज्ञान. हवे पांचे ज्ञानना क्रमशः लक्षण कहे छे:-१ पांच इंद्रिय अने मन ए छना व्यापार बडे जे वस्तुनुं ज्ञान धाय ते मतिज्ञान. २ कंबूग्रीवादि आकारे जे वस्तु होय ते 'घट' अने जलादि धारण करे २ पनवणा सूत्रना ३६ मा पदथी विशेष जाणवू.

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