Book Title: Siddhachal Vando Re Nar Nari
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Mahendrasagar

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दि. २/६/२००६ ज्ञानतीर्थ, कोबा दो शब्द... श्री तीर्थपान्थरजसा विरजीभवन्ति तीर्थेषु बम्भ्रमणतो न भवे भ्रमन्ति। द्रव्यव्ययादिह नराः स्थिरसंपदः स्युः । पूज्या भवन्ति जगदीशमथार्चयन्तः।। (उप.तरंगिणी.) पर्वतों में कैलास पर्वत, समुद्रों में लवण समुद्र, मन्त्रों में नवकार मंत्र, शास्त्रों में कल्पसूत्र मुकुटशिरोमणि है त्यों तीर्थों में तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय तीर्थशिरोमणि है। यद्यपि जैन शासन में सम्मेतशिखर, गिरनार, अष्टापद, आबू और शत्रुजय सभी महान माने जाते हैं, परंतु सर्व काल में इन सभी में मुख्य, शाश्वत और परम पुनित एक शत्रुजय महातीर्थ ही है। इस तीर्थ का महिमागान महाविदेह क्षेत्र में विहरमान श्री सिमन्धर स्वामी अपनी देशना में करते हैं। जिसने इस तीर्थ की यात्रा नहीं की वह अभी जन्मा ही नहीं (गर्भावास में है)। इस तीर्थ की एक बार या अनेक बार यात्रा करने से जनमो-जनम के कर्म निर्जरित होते हैं व भव्यत्व की पहचान तय होती है। सचमुच यह गिरिराज पावन-मनभावन और सुन्दर-सलौना है। यहाँ सत्तर वर्ष के वृद्ध हॉफते हुए और सात वर्ष के बालक खेलते खेलते यात्रा करके दादा को For Private and Personal Use Only

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