Book Title: Siddhachakra Vidhan
Author(s): Santlal Pandit
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 429
________________ सिद्ध एक देश मुनिराज हैं, सर्व देश जिनराज । भव तन भोग विरक्तता,निर्ममत्त्व सुख साज ॥ीप रहा या परदुखमै दुख हो जहां, मोह प्रकृतिके द्वार । दया कहै तिसको सुमति, सोतुम मोहनिवार ॥ोप पयागोहापाम.पर्धा वि० स्वयं बुद्ध भगवान हो, सुर मुनि पूजन योग। विन शिक्षा शिवमार्गको,साधोहो धरि योग।पोह्रीं पढ़ पान या नमःपाय 18017 तुम एकत्व अन्यत्व हो, परसो नहीं सम्बन्ध । स्वयसिद्ध अविरुद्ध हो, नाशो जगत प्रवन्ध ।। पाहोपर मनानाग नम पाय काहूको नहिं यजन करि, गुरुका नहिं उपदेश । ई स्वयंबुद्ध स्व-शक्ति हो, राजो शुद्ध हमेश ॥ ही पह परीक्षाय नम पार्य । ६८२॥ तुम त्रिभुवनके पूज्य हो, यजो न काहू और । निजहितमे रतहो सदा, पर निमित्त को छोर॥ ही पह त्रिभुनपूग्यापनम पयं । " अरहन्तादि उपासना, मोह उदयसो होय ! स्वय ज्ञानमें लय भए, मोह कर्मको खोय ॥ हों महं मोक्षकाप नम.पर्य | marnuman wr पप्टम wrrarunwurur

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