________________
[ ४८ ] जो पाश्रव के हेतु हैं वे ही संवर के हेतु हैं जो संवर के हेतु हैं वे ही पाश्रव के हेतु हैं कैसा अच्छा खुलासा है ?
समय प्राभृत गा० २८३ में भी इसी का ही अनुकरण है। इस अपेक्षा से दंड भी उपकारक उपकरण है और मुनि उसे आवश्यकता के अनुसार रखते हैं।
दिगम्बर--उपधि किसे मानी जाय ?
जैन--जिसके जरिये पांच महाव्रतों का निर्वाह, ज्ञानादिकी पुष्टि और समीति आदि का पालन अच्छी तरह होता है वह उपधि है, वही उपकारक परद्रव्य है । जिसके द्वारा उपरोक्त फल न हो, वह उपधि नहीं किन्तु उपाधि ही है।
दिगम्बर--उपधि से क्या लाभ है ?
जैन--"जैन निर्गन्थों को उपधि द्वारा अनेक लाभ प्राप्त होते हैं जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं।
1-नग्नता से धर्म की निन्दा होती है, धर्म प्रचार रुक जाता है, विहार में बाधा पड़ती है, राजा महाराजा विविध फरमान निका. लते है, बच्चे डरते हैं, सभ्य समाज अपने घरमें नहीं आने देता है, अजैन का आहार पानी बंद हो जाता है, एक ही घर से गोचरी करनी पड़ती है, और जैन शासन को अनेकों विधि नुकसान होता है। सिर्फ दो चार हाथ का वस्त्र न होने से इतना नुकसान उठाना पडता है । एक दिगम्बर विद्वान ने ठीक ही कहा है। ___ अल्पस्य हेतोबहु नाश मिच्छन् । विचारमूढः प्रविभाव्य से त्वम् । __ मुनि जैन धर्म को इस नाश में से चोल पटाके जरिये बचा लेता है । वस्त्रधारी मुनि सब स्थानों में जा सकता है। राजा के अंतःपुर में भी सत्कार पूर्वक प्रवेश पा सकता है।