Book Title: Shrimad Devchandra Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 650
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री बाहुजिन स्तवन. १०७१ हणता नयी अने पर कोइ हणी शके नही ए अहिंसकता जे साध्यमां हती ते तुम्हारे नीपनी छे. इतले तुम्हें परम अहिंसक छो अने अहिंसकताना कारण छोजी, ए रीते भाव अहिंसकता नीपनी छे. ते अहिंसकपणो सर्वनें ध्येय छे. श्री जिनराज तुम्हारो अहिंसकपणो जे जीव अवलंबीने तन्मयी थाये - तेहनो पोतानो परम अहिंसकपणो नीपते, ते माटे तुम्हे परम आधार छो. भव्यजीवना परम उपगारी छो, दयाल छो, शरणभूत छोजी. ९ म अहिंसकतामयी, दीठो तुं जिनराज, प्रभुजी; रक्षक निज पर जीवनो, तारण तरण जिहाज, प्रभुजी ॥ बा० ॥ १० ॥ एम कहतां ए रीते सर्व गुणे सर्व पर्याये उपादानपणे, निमित्त णे, उपगारीपणे, आधारपणे, उपदेशपणे, अतिशयादिक उदीकपणे हे वीतराग तुम्हे परम दयाल छो. ते हे प्रभुजी में मिथ्यात्व असंयमनी गढ़ताये अनादिकल स्वरूपावृत्तपर्णे भव भटकतां आत्मधर्म उछेदी में प्रवर्ततां तुम्ह समान तत्वी देव पर भावनो अकर्त्ता अभोक्ता ते किवारे दीटो नहते. इतले उपयोग गोचर कर्यो नहतो. ति हवमां कोइक गिर सरिदुनल घोलना न्यायें श्री वीतराग आगम श्रवण यथार्थ भासक गुरु उपगारे हे जिनराज नाहरी स्वरूपानंदीपणो तवोपकारीपणो ए अवसरे भासनगोचर थयो ते माहरे आज परम कल्याण थयो. ते माटे श्री जिनराज तुम्हे रक्षक छो. निज कहतां स्वधर्मनो तथा कारणपणे परजीवना पिण रक्षक छो. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670