Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ अभिप्राय भगवान श्री महावीरदेव के शासन में स्त्री पुरुष दोनों को सेवा करने का समान अधिकार प्राप्त है । स्त्रियों में जैन साध्वियाँ त्याग-तपश्चर्या और ज्ञान की साधना के क्षेत्र में पुरुषों से किसी भी प्रकार से कम नहीं रही हैं। विदुषी-परमविदुषी साध्वी बुद्धिश्रीजी जैन शासन-गगन की एक परम प्रकाशवाली ज्योति थी। उनका स्थूल शरीर विद्यमान न होने पर भी उनका मूर्तिमान साहित्य आज भी जनता में स्फूर्तिप्रद प्रस्तुत है । उपाध्यायजी श्री धमाकल्याणजी महाराज की संस्कृत चैत्यवन्दन चतुर्विशतिका का हिन्दी अनुवाद आपने बड़े सुन्दर ढंग से किया है, जो मुद्रित हो चुका है। उनकी यह दूसरी कृति श्रीचन्द्र चरित्र हिन्दी साहित्य की शोभा में अपूर्व वृद्धिकारक ही हुई है। इसके प्रकाशन में प्रेस सम्बन्धी प्रयत्न करने वाले मुनिराज श्री प्रेमसागरजी को मैं धन्यवाद दूंगा जिन्होंने पूरी कोशिस करके बारह वर्ष पहिले लिखे हुए इस ग्रन्थ को प्रकाश में लाया। अन्त में मैं पाठकों से प्रेरणा करूगा कि श्रीचन्द्र चरित्र से जीवन को ऊंचे उठाने वाले आदर्श स्वीकार करें ! इत्यलं विस्तरेण निवेदक :बृहद् भट्टारक खरतर गच्छाचार्य श्री जिनधरणीन्द्रसूरि जयपुर (राजस्थान)

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 502