Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press
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(१५२) देइ संजम लीयोरे लो० ॥ हो० ॥ बीतसोकनीनन्दनपामी राज्य जो, रोहिणीराणी साथे सुख सम्पद पीयोरे लो० ॥८॥ हां. रोहिणीराणीने आठपुत्र चार पुत्री जो, पूरवभवनासम्बन्धथीआवीअवतर्या रे लो. हां० आठमापुत्रनो नामदियो लोकपालजो, खोलेमालइ रायराणी गोखे वर्यारे लो० ॥९॥ हां. क्रीडा करें दम्पति नानाप्रकार जो, तिणसमे एकनारीने दीठीरोवती रे लो० हां. दीनथइ सिरपीटे नानाविलाप जो, देखी ने अचरज पामी रोहिणीसतीरे लो० ॥ १० ॥ हां० राजानेकहे राणी नाटकजोरजो, एहवो तो मैं कदियन दीठो नाथजीरे लो०, हां. कहोनिमुझने नाटकनो स्वामी नाम जो, जिनकृपाचंद्रसरि एहनेसुकृत साथजीरे लो० ॥११॥
॥ ढाल दुसरी देशी यतनी॥ तब राजा कहे सुण राणी, मदमाही घणी भराणी, ए पुत्रमरे गभराणी, रोवेछे नेत्रभराणी, सलूणी बोल विचारी बोलो एतो सहु जगने सम तोलो, सलूणी बो० ॥ १२ ॥ जबवीतेतब जो कीजै, इमकहीने राजाखीजे, खोलेथीहाथमांलीजे, लेइ कुंवरने नीचो नाखीजे सलूणी बो० ॥१३ ।। तबरोहिणीहसती बोले, बालक किम नीचे होले, राजामनमां दुःखडोले, रोवेअति चिन्ताछोले, ॥ सलूणी बो० ॥ १४ ॥ पडतो सुत सासण देवे, सुकोमल हाथे लेवे, सिंहासन ऊपर सेवे, नाटक करि लुंछना लेवे, सलूणी बो० ॥ १५॥ एअचरिज सहुजन निरखे, राजाराणी मनहरखे विसयलहि नरपति सरखे सुत पूरखपुण्यने परखे,
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