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श्राद्धविधि/३१८ . पूर्वभव के अभ्यास के कारण उन्हें परस्पर अत्यन्त ही अनुराग होने से वे एक-दूसरे के भोग की इच्छा करने लगे। पूर्वभव के सम्बन्ध को ही धिक्कार हो।
कर्मयोग से जीवों को इस संसार की कैसी कुवासनाएँ उत्पन्न होती हैं, जिसका वाणी से उच्चारण भी सम्भव नहीं है और उस कुवासना से उत्तम पुरुषों में भी ऐसी हल्की प्रवृत्ति हो जाती है।
जब तुम निरन्तर गांगलि के आश्रम की ओर चल पड़े थे, तब चन्द्रवती ने अपने इष्ट को सिद्धि के लिए चन्द्रशेखर को बुला लिया था। वह तुम्हारे राज्यग्रहण के लिए ही पाया था, परन्तु जिस प्रकार उत्तम्भक मणि से अग्नि शीघ्र विफल होती है, उसी प्रकार तुम्हारे पुण्य से वह सफल नहीं हुआ। उस समय चतुर होने पर भी मुग्ध की तरह तुमको उन दोनों ने नाना प्रकार की वचनयुक्तियों के द्वारा शान्त करने का प्रयत्न किया।
___ उसके बाद उसने कामदेव नाम के यक्ष की आराधना की। उस देव ने प्रत्यक्ष होकर कहा "बोलो, मैं तुम्हारा क्या प्रिय करूं?" उसने कहा-"मुझे तुम चन्द्रवती दो।" उसी समय यक्ष ने उसे अंजन देकर कहा- "इस अदृश्यकारक अंजन से, जब तक मृगध्वज राजा चन्द्रवतो के पुत्र को नहीं देखेगा, तब तक उसके साथ विलास करते हुए तुमको वह नहीं देख पायेगा और उसके देखने पर ये सब बातें प्रगट हो जायेंगी।"
इस प्रकार यक्ष के वचनों को सुनकर चन्द्रशेखर खुश हो गया और चन्द्रवती के घर चला गया। अंजनयोग से अदृश्य बनकर इच्छापूर्वक चन्द्रवती के साथ भोग करता हुआ वहाँ रहा । उससे चन्द्रवती ने चन्द्रांक नाम के पूत्र को जन्म दिया। यक्ष के प्रभाव से उसके जन्म प्रादि का किसी को पता नहीं चला। उसने जन्म के साथ ही वह पूत्र अपनी पत्नी को सौंप दिया। अपने पति के मुख को भी नहीं देखती हुई यशोमती ने अपने पुत्र की भाँति उसका लालन-पालन किया। अहो ! स्त्री का राग कितना अपूर्व है ?
. क्रमशः जब वह बालक चन्द्राङ्क लावण्य से सुशोभित तरुणावस्था को प्राप्त हुआ, तब पतिवियोग से पीड़ित यशोमती ने सोचा-"जिसका पति विदेश चला गया हो ऐसी स्त्री की तरह मैं भी चन्द्रवती में अत्यन्त प्रासक्त अपने पति चन्द्रशेखर का मुख भी नहीं देख पाती हैं। अत: जिस प्रकार पालन किये वृक्ष का फल स्वयं ही पाते हैं, उसी प्रकार मेरे द्वारा पालन किये गये इसी को रमणीय शरण मानकर फल प्राप्त करूं।"
इस प्रकार विचार कर और विवेक व चतुराई को छोड़कर उसने उसे कहा-"यदि तुम मुझे स्वीकार करोगे तो यह विशाल राज्य तुम्हारा होगा और मैं भी तुम्हारे प्राधीन रहूंगी।" यह बात सुनकर अचानक हुए अति उग्र घात से पीड़ित की भाँति वह बोला--"हे माता। तुम अश्राव्य, प्रवक्तव्य और अयोग्य वचन क्यों बोल रही हो?"
___ उसने कहा- "हे सुन्दर ! मैं तुम्हारी जन्मदाता माता नहीं हूँ, किन्तु मृगध्वज राजा की रानी चन्द्रावती तुम्हारी माता है।" यह बात सुनकर वास्तविकता को जानने के लिए आतुर मनवाला, अश्राव्य वचन की अवगणना करके सत्य बुद्धिवाला वह माता-पिता के निरीक्षण-परीक्षण के लिए निकल पड़ा और आज वह तुम्हें मिला।