Book Title: Shravak Dharm Vidhi Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, Vinaysagar Mahopadhyay, Surendra Bothra
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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(श्रावक धर्म विधि प्रकरण)
३०.
३३.
सेयम्बरो य आसम्बरो य बुद्धो य अहव अण्णो वा।
समभावभावि अप्पा लहइ मुक्खं न संदेहो॥ सम्बोधप्रकरण, १/३ ३१. नामाइ चउप्पभेओ भणिओ। वही, १/५
(व्याख्या लेखक की अपनी है) ____ तक्काइ जोय करणा खोरं पयउं घयं जहा हुज्जा। वही, १/७
भावगयं तं मग्गो तस्स विसुद्धीइ हेउणो भणिया। वही, १/११ पूर्वार्द्ध ३४. तम्मि य पढमे सुद्दे सव्वाणि तयणुसाराणि। - सम्बोधप्रकरण, १/१०
वही, १/९९-१०४ ३६. वही, १/१०८ ३७. सम्बोधप्रकरण, २/१०, १३, ३२, ३३, ३४ ३८. सम्बोधप्रकरण, २/३४-३६, ४२, ४६, ४९- ५०, ५२, ५६ - ७४, ८८ - ९२ ३९. वही, २/२०
जह असुइ ठाणं पडिया चंपकमाला न कीरते सीसे। पासत्थाइटाणे वट्टमाणा इह अपुजा ॥ वही, २/२२ . जइ चरिउं नो सक्को सुद्धं जइलिंगमहवपूयट्ठी। तो गिहिलिंग गिण्हे नो लिंगी पूयणारहिओ ॥ वही, १/२७५ एयारिसाण दुस्सीलयाण साहुपिसायाण भत्तिपुव्वं। जे वंदण-नमंसाइ कुव्वंति न ते महापावा? – सम्बोधप्रकरण, १/११४ सुहसीलाओ सच्छंदचारिणो वेरिणो सिवपहस्स। आणाभट्ठाओ बहुजणाओ मा भणह संवृत्ति॥ देवाइ दव्वभक्खणतप्परा तह उम्मग्गपक्खकरा। साहुजणाणपओसं कारिणं मा भणह संघं। जहम्म अनीई अणायार सेविणो धम्मनीइं पडिकूला।। साहुपभिइ चउरो वि बहुया अवि मा भणह संघं॥ असंघं संघं जे भणति रागेण अहव दोसेण। छेओ वा मुहुत्तं पच्छित्तं जायए तेसिं॥
- वही, १/११९-१२१, १२३ ४४. गब्भपवेसो वि वरं भद्दवरो नरयवास वासो वि।
मा जिण आणा लोवकरे वसणं नाम संघे वि॥ वही, २।१३२ ४५. सम्बोधप्रकरण, २/१०३
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