Book Title: Shravak Dharm Prakash Author(s): Harilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust View full book textPage 7
________________ नमः श्री वर्धमानाय प्रकाशकीय निवेदन श्री पद्मनंदी पंचविंशतिका' के 'देशव्रतोद्योतन' अधिकार पर परम पूज्य आत्मश संत श्री कानजी स्वामीने अत्यन्त भाववादी प्रवचन किये इसलिये उनका हम हार्दिक अभिवादन करते हैं। उन प्रवचनोंका सुन्दर संकलन प्र. हरिभाईने किया और वे गुजराती में पुस्तकाकार प्रकाशित हुए, उसके हिन्दी अनुवादकी यह द्वितीय भावृत्ति प्रगट करते हुए अत्यन्त हर्ष होता है । प्रथमावृत्तिमें बतलाये अनुसार इस पुस्तकके अनुवादक भी सोनचरणजी दि० जैन समाज सनावदके एक सुप्रतिष्ठित ' व्यक्ति तथा अध्यात्मरसिक, सरल और गम्भीर महानुभाव हैं। सोनगढ़ साहित्यके प्रति उनकी विशेष रुचि है । दूसरे अनुवादक श्री प्रेमचंदजी जैन M. Com. हैं, और सनावदके भी मयाचंद दिगम्बर जैन उच्चतर विद्यालयमें व्याख्याता है। वे भी सोनगढ़ साहित्यके प्रति विशेष प्रेम रखते हैं । उपरोक्त दोनों महानुभावने इस हिन्दी अनुवादको अत्यन्त उल्लासपूर्वक और बिलकुल निस्पृहभावसे तैयार कर दिया है। इसलिए उनको धन्यवाद देनेके साथ उनका उपकार मानते हैं। अजित मुद्रणालय के मालिक श्री मगनलालजी जैनने इस पुस्तकका मुद्रणकार्य सुन्दर ढंगसे कर दिया है अतः उनका आभार मानते हैं । इन प्रवचनोंमें श्रावकके कर्त्तव्यका जो स्वरूप अत्यन्त स्पष्टरूपले पूज्य गुरुदेवने दर्शाया है उसका अनुसरण करनेके लिए हम सब निरन्तर प्रयत्नशील रहें... यही भावना | } अषाढ शुक्ला-२ वीर सं. २४९६ साहित्य प्रकाशन समिति, श्री दि० जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ (सौराष्ट्र )Page Navigation
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