Book Title: Shravak Dharm Prakash
Author(s): Harilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 172
________________ १६० [स्वतंत्राकी घोषणा कर्ताके बिना कार्य नहीं और दूसरा कोई कर्ता नहीं । कोई भी अवस्था हो-शुद्ध अवस्था, विकारी अवस्था या जड़ अवस्था, उसका कर्ता न हो ऐसा नहीं होता, तथा दूसरा कोई कर्ता हो-ऐसा भी नहीं होता। -तो क्या भगवान उसके कर्ता हैं ? -हो, भगवान कर्ता अवश्य हैं, परन्तु कौन भगवान ? अन्य कोई भगवान नहीं परन्तु यह आत्मा स्वयं अपना भगवान है, वही कर्ता होकर अपने शुद्ध-अशुद्ध परिणामोंको करता है। जड़के परिणामको जड़ पदार्थ करता है। वह अपना भगवान है। प्रत्येक वस्तु अपनी-अपनी अवस्थाकी रचयिता ईश्वर है। स्वका स्वामी है परका स्वामी मानना मिथ्यात्व है। संयोगके बिना अवस्था नहीं होती-ऐसा नहीं है; परन्तु वस्तु परिणमित हुए बिना अवस्था नहीं होती-ऐसा सिद्धान्त है। अपनी पर्यायके कर्तृत्वका अधिकार वस्तुका अपना है, उसमें परका अधिकार नहीं है। इच्छारूपी कार्य हुआ उसका कर्ता आत्मद्रव्य है। उस समय उसका शान हुआ, उस शानका कर्ता आत्मद्रव्य है। पूर्व पर्यायमें तीव राग था इसलिये वर्तमानमें राग हुआ, इसप्रकार पूर्व पर्यायमें इस पर्यायका कर्तापना नहीं है । वर्तमानमें आत्मा वैसे भावरूप परिणमित होकर स्वयं कर्ता हुआ है। इसीप्रकार झानपरिणाम, श्रद्धापरिणाम, आनन्दपरिणाम उन सबका कर्ता आत्मा है । पर कर्ता नहीं, पूर्वके परिणाम भी कर्ता नहीं तथा वर्तमानमें उसके साथ वर्तते हुए अन्य परिणाम भी कर्ता नहीं हैं-आत्मद्रव्य स्वयं कर्ता है । शास्त्रमें पूर्व पर्यायको कभी-कभी उपादान कहते हैं, वह तो पूर्व-पश्चात् की संधि बतलाने के लिये कहा है; परन्तु पर्यायका कर्ता तो उस समय वर्तता हुआ द्रव्य है, वही परिणामी होकर कार्यरूप परिणमित हुआ है। जिस समय सम्यग्दर्शनपर्याय हुई उस समय उसका कर्ता आत्मा ही है। पूर्वकी इच्छा, वीतरागकी वाणी. या शास-वे कोई वास्तव में इस सम्यग्दर्शनके कर्ता नहीं हैं। उसीप्रकार जानकार्यका कर्ता भी आत्मा ही है। इच्छाका ज्ञान हुमा, वहाँ वह शाब कहीं इच्छाका कार्य नहीं है और इच्छा वह शानका कार्य नहीं है। दोनों परिणाम एक ही वस्तु के होनेपर भी उनको कर्ता-कर्मपना नहीं है। कर्ता तो परिणामी वस्तु है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 170 171 172 173 174 175 176