Book Title: Shraddh Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Jain Bandhu Printing Press

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Page 797
________________ (७७४) वह कच्चे सूतसे लपेटी हुई लाइ जाती । चैत्यके द्वारमें आते पीछे फिरकर देखा जिससे वह प्रतिमा वही स्थिर रहगई । पश्चात् चैत्यका द्वार फिरा दिया । वह अभीतक वैसाही है। कोई २ ऐसा कहते हैं कि, सुवर्णमयबलानकमें बहत्तर बडी २ प्रतिमाएं थीं । जिनमें अट्ठारह सुवर्णमयी, अट्ठारह रत्नमयी, अट्ठारह रौप्यमयी और अट्ठारह पाषाणमयी थी । इत्यादिसातवां द्वार प्रतिमाकी प्रतिष्ठा शीघ्र कराना चाहिये । षोडशकमें कहा है कि- पूर्वोक्त विधि के अनुसार बनवाई हुई जिनप्रतिमाकी प्रतिष्ठा शीघ्रही दश दिन के अंदर करनी चाहिये । प्रतिष्ठा संक्षेपसे तीन प्रकारकी है--एक व्यक्तिप्रतिष्ठा, दूसरी क्षेत्रप्रतिष्ठा और तीसरी महाप्रतिष्ठा, सिद्धांतके ज्ञाता लोग ऐसा कहते हैं कि, जिस समयमें जिस र्थिकरका शासन चलता हो उस समयमें उसी तीर्थकरकी ही अकेली प्रतिमा हो वह व्यक्तिप्रतिष्ठा कहलाती है। ऋषभदेवआदि चौवीसोंकी क्षेत्रप्रतिष्ठा कहलाती है और एकसौ सत्तर भगवानकी महाप्रतिष्ठा कहलाती है, बृहद्भाष्यमें कहा है कि- एक व्यक्तिप्रतिष्ठा, दूसरी क्षेत्रप्रतिष्ठा और तीसरी महाप्रतिष्ठा, उन्हें अनुक्रमसे एक, चौबीस और एकसौसत्तर भगवानकी जानों। सब प्रकारकी प्रतिष्ठाओंकी सामग्री संपादन करना, श्रीसंघको तथा श्रीगुरुमहाराजको बुलाना, उनका प्रवेशआदि महोत्सवपूर्वक करके,

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