Book Title: Shilki Nav Badh
Author(s): Shreechand Rampuriya, 
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

View full book text
Previous | Next

Page 280
________________ परिष्टश्रीजना रचित शील की नय बाड़ L.C ढाल (मोहन सुंदरी ले गयी हनी मनहरि इंद्री नारि ना दीठो वर्ष विकार । "बागुल कांनी मृगगणी हो पास रच्यो करतार ॥ १ ॥ सुगुण रे नारी रूप न जोईये जोईये घरि राम सु० । नारी रूप दीवली कामी पुरुष पतंग | झांप सुष में कारण हो दार्ज अंग सुरंग सु० ना० ॥ २ ॥ मनगमता रमता ही उर कुच वदन सुरंग । तहर अहर भोगी डस्या हो जोवंतां व्रत मंग सु० ना० ॥ ३ ॥ कांमणिगारी कांपनी इण जीतो सयल संसार अयन को रह्यो हो सुरनर गया सहू हार सु० ना० ॥ ४ ॥ हाथ पाव छेद्या हुवै कांन नाक पिण जेह । 15 ते पिण सो वरसां तपी हो ब्रह्मचारी वजे ते सु० ना० ॥ ५ ॥ रूप रंभा सारिषी मीठा बोली नारि ।. तो किम जोवं एहवी हो भर योवन व्रत धारि सु० ना० ॥ ६ ॥ अबला इंद्री जोवतां मन धावसि प्रेम राजमती देवी की हो तुरत हिग्यो रहनेमि सु० ना० ॥ ७ ॥ रूप कूप देपी करी मांहि पडे कांमंध । दुष मांगें जांगें नहीं हो कहै जिनहरष प्रबंध सु० ना० ॥ ८ ॥ दूहा संयोगी पास है ब्रहाचारी निसदीस तेन व्रत भगी" भाजे विसवावीस ॥ १ ॥ वसै नहीं कुडि अंतर सील तभी हुवड हांणि । मन चंचल वसि रापवा हिय घरी जिन वांणि ॥ २ ॥ ढाल : ६ : (श्री चन्दा प्रभु पाहुणौ रे एहनी) वाड हि सुण पंचमी रे सील तणी रषवाल रे । चूरी पड़ती तो सही रे व्रत थासी विसराल रे वा० ॥ १ ॥ परीअछ भींतनें अंतर है नारि र तिहां रात रे । केलि करें निज कंत सुंरे विरह मरोड़ गात रे वा० ॥ २ ॥ कोयल जिम कुह कैलवे रे७ गावै मधुरं साद रे । गहमाती राती थकी रे सुरत रोवे विरहाकुल भई रे दाधी दोणे होणे बोल रे काम सरस ऊनमाद रे वा० ॥ ३ ॥ दुषदन भाल रे । जगावे बाल रे बा० ॥ ४ ॥ १ बास २- जोई नहीं पर रंग ३४५ कुहका करइ रेस ६- दुपद वकावंल रे १० - विरह 只要男 Scanned by CamScanner

Loading...

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289