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शीघ्रबोध भाग ५ बां.
रुपिया देना पडता है, वैसेही कर्मका अबाधाकाल पूर्ण होने पर कर्म उदयमें आते हैं. उस वरूत भोगना पडता है. हुंडीकी मुदत पकने के पहिलेही रुपिया दे दिया जाय, तो लेनदार मांगने का नहीं आता. इसी तरह कर्मोंके अबाधाकालसे पूर्व तप संयमादिसे कर्म क्षय कर दिये जाय तो कर्मविपाकों भोगने नहीं पढते. ( अर्जुन मालीयतू )
अबाधाकाल चार प्रकारका है. यथा.
( १ ) जघन्य स्थिति और जघन्य अवाधाकाल. जैसे दशमें गुणस्थानक अंतरमुहूर्त स्थितिका कर्मबंध होता है. और उसका rararate भी अंतरमुहूर्तका है.
( २ ) उत्कृष्ट स्थिति और उत्कृष्ट अवाधाकाल. जैसे मोहनीयकर्म उ० स्थिति ७० कोडाकोडी सांगरोपमकी है. और अबाधाकाल भी ७००० वर्षका है.
( ३ ) जघन्य स्थिति और उत्कृष्ट अबाधाकाल. जैसे मनुष्य तिर्यंच, क्रोड पूर्वका आयुष्यवाला क्रोड पूर्वके तीसरे भाग में मनुष्य या तिर्थच गतिका अल्प आयुष्य बांधे. तो कोड पूर्व के तीजे भागका अबाधाकाल और अंतर महुर्तका आयुष्य.
( ४ ) उत्कृष्ट स्थिति और जघन्य अबाधाकाल. जैसे अंत (छेले ) अंतरमुहूर्त में ३३ सागरोपमका उ० नरकका आयुष्य बांधे. मूल कर्म आठ ज्ञानावरणीय १ दर्शनावरणीय २ वेदनीय ३ मोहनीय ४ आयुष्य ५ नाम ६ गोत्र ७ अंतराय ८ समुचय जीव और २४ दंडक के जीवोंके आठ कर्म है.
मूल आठो कर्मोकी उत्तर प्रकृति १४८ यथा ज्ञानावरणीय ५ दर्शनावरणीय ९ वेदनीय २ मोहनीय २८ आयुष्य ४ नामकर्म ९३ गोत्रकर्म २ और अंतराय कर्मकी ५ एवम् १४८. जीम्मे