Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५० www.kobatirth.org शत्रुंजयतीर्थोद्धास्प्रबन्ध का उद्धार- - वर्णन ( दूसरा उल्लास । ) 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चापोत्कट ( चावडा ) वंश के प्रसिद्ध नृपति वनराज ने गुजरात की ( मध्यकालीन ) राजधानी अणहिल्लपुर-पाटण को बसाये बाद, * वनराज, योगराज, क्षेमराज, भूयड, वज्र, रत्नादित्य और सामन्त सिंह नामक ७ चावडाराजाओं ने उस में राज्य किया । उन के बाद मूलराज, चामुण्डराज, वल्लभराज, दुर्लभराज, भीमराज, कर्णराज, जयसिंय ( सिद्धराज ), कुमारपाल, अजयपाल, x लघु मूलराज और भीमराज - ने इन ११ चौलुक्य ( सोलंकी ) नृपतियों ने गुजरात का शासन किया । चौलुक्यों के बाद बाघेलावंश के वीरधवल, वीसल, अर्जुन देव, सारङ्गदेव और कर्ण नामक पांच राजाओं का राज्य रहा । संवत् १३५७ में अलाउद्दीन के सैन्य ने कर्णराजा का पराजय कर पट्टन में अपना अधिकार जमाया । विक्रम संवत् १२४५ में मुसलमानों ने भारत की राजधानी दिल्ली को अपने आधीन में लिये बाद अल्लाउद्दीन तक १५ बादशाहों ने बहां पर अधिकार किया । उन के नाम इस प्रकार है * इन सब राजाओं ने कितने कितने समय तक राज्य किया है इसका उल्लेख, मूल प्रबन्ध के अन्त में जो ' राजावली - कोष्ठक ' दिया है उस में स्वयं प्रबन्धकार ने कर दिया है । x टिप्पणि में लिखा है, कि किसी किसी जगह अजयपाल के बाद त्रिभुवनपाल का नाम लिखा हुआ मिलता है परन्तु वीरधवल के पुरोहित सोमेश्वर कवि की बनाई हुई 'कीर्तिकौमुदी' मे वह नहीं गिना गया है इस लिये हमने भी उस का उल्लेख नहीं किया । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118