Book Title: Sasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 45
________________ पुत्रीको माताका उपदेश [43 SOSPOSTO SEXSEOKSESBOCSOCSO CSO CSEXO CDXS बालकको बहुत कष्ट पहुंचता है और बुरा प्रभाव पड़ता है तथा अंगहीन व रोगी दुःस्वभाववाली संतान होती है। (30) ऋतुकालमें गर्भाधान होनेसे भी विकल अंग व दुःस्वभाववाली असदाचारी संतान होती है। अतएव कमसे कम 5 दिन अवश्य ही बचा देना चाहिये। (31) प्रायः बहुतसी स्त्रियां जब कभी घरसे बाहर कहीं जीमने आदिके लिए अथवा मेले ठेलेमें जाती हैं तो बहुतसे वस्त्राभूषणोंसे सुसज्जित होकर ( यदि घरमें न हों तो मांगकर भी पहिन) जाती हैं जो उचित नहीं है, परंतु जब वे घर आती है तो अपने पतिके सन्मुख मैले कुचले कपडे पहिनकर आभूषण रहित नंग धडंग (डाकनसी बनकर) आती हैं। इससे ही उनके पति उनसे घृणा करने लगते हैं। इसलिए स्त्रियोंका मुख्य कर्तव्य है कि जब वे कहीं बाहर जावें, तब साधारण वस्त्राभूषण पहिनकर जावें और जब पतिदेवके सन्मुख जावें ( यदि पति घर हो तो रात्रि समय) तो सम्पूर्ण श्रृंगार करके जावें जिससे आराध्य पतिका चित्त उन्हींके पास बन्ध जावे और अन्यत्र न जाने पावे। श्रृंगार वास्तवमें पतिहीके लिए होता है, न कि औरोंको दिखानेके लिए। (32) यदि पति विदेशमें हो तो भी स्त्रियोंको श्रृंगार नहीं करना चाहिए। तथा घरसे बाहर अत्यन्त आवश्यकता होनेपर भी बिना किसी विश्वस्त गुरूजनको साथ लिए कदापि न जाना चाहिए। (33) अज्ञानतावश बहुतसी पुत्रियां अपने गुरूजनों (माता, पिता, मामा, बड़ा भाई, काका, बड़ी भाभी, मौसी, फूआ, फुफा, काकी आदि) से अपने पैर पुजवाती हैं यह उनकी

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