Book Title: Sartham Bhavvairagya Shatakam
Author(s): A M and Company
Publisher: A M and Company

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५४ ) आ संसार दुःखनुं कारण छे, दुःखरूपी फळने आपनारो छे, अने असह्य घोर दुःखस्वरूप छे, आवा महाभयङ्कर संसारनो पण, स्नेह रूपी बेडीथी अतिशय बंधायेला जीवो त्याग करता नथी ! जीवो संसारने दुःखमय जाणे छे, छतां रागबन्धनथी जकडायेला तेनो त्याग करी शकता नथी. माटे हे जीव ! रागबन्धनने दूर करवाने उद्यमवंत था, के जेथी आवा दुःखमय संसारथी तारो छूटकारो धाय. ॥ ७८ ॥ नियकम्मपवणचलिओ, जीवो संसारकाणणे घोरे । का का विडंबणाओ, न पावए दुसहदुक्खाओ १७९ पोताना कर्मरूपी पवनने पराधीन थइ पतित थयेलो आ जीव संसाररूपी महाविकट जंगलमां असह्य दुःखोथी भरपूर कइ कइ विडंबनाओ पामतो नथी ?, अर्थात् सर्व विडंबनाओ पामे छे. हे आत्मा ! तें कर्मने वश थइ असह्य दुःखो सहन कर्या, अने विविध प्रकारनी * निजकर्मपवनचलितो, जीवः संसारकानने घोरे । काः का विडम्बना, न प्राप्नोति दुस्सहदुःखाः ॥ ७९ ॥ For Private And Personal Use Only

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