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पीड़ा पहुंचाना, निर्दयता से पीटना, शरीर के अंग काटना, इत्यादि भी हिंसा में गिने जाते हैं। परन्तु डॉक्टर जो चीराफाड़ी रोगी शरीर को अच्छा करने के इरादे से करते हैं वह हिंसा नहीं होती। अहिंसा-अणुव्रती को लाभवश मनुष्य पर शक्ति से अधिक बोझ भी नहीं लादना चाहिए और न ही शक्ति से अधिक काम लेना चाहिए। किसी को भूख प्यास की पीड़ा पहुंचाना भी अहिंसा-अणुव्रती के लिए मना है। अप्रिय वचन बोलना भी (द्वेषवश) हिंसा में गिना जाता है ।
(२) अचौर्य व्रत--इस व्रत के पालन करने वाले को बिना दी हुई वस्तु को उठा कर अपने काम में लाना या किसी को देना मना है। परन्तु जो चीजें सर्वसाधारण के उपयोग के लिए हैं जैसे जल, मिट्टी इत्यादि उन को बिना पूछे लिया जा सकता है। चोरी कराना, चोरी का माल खरीदना, नापतोल के वाटों को कमती-बढ़ती रखना, बिक्री की चीज में मिलावट करना, अकाल से लाभ उठा कर ज्यादा मुनाफाखोरी करना, या घूस लेना ये सब बातें चोरी में गिनी जाती हैं।
(३) ब्रह्मचर्य अणुव्रत-काम वासना एक प्रकार का रोग है अतएव अपनी पत्नी को छोड़ कर अन्य