Book Title: Saral Jyotish
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

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Page 150
________________ योनि ज्ञान सम्पूर्ण नक्षत्रों को चौदह योनियों में बांटा गया है। जहां प्राणी दूसर प्राणी का मित्र है, वहीं उसका बैरी भी होता है। यह एक सर्वादिवित तथ्य है। योनि मिलान करने से यह ज्ञात हो जाता है कि वर वधु की स्थिति भी उन दोनों की योनियों जैसी ही रहेगी। लोक में परस्पर वैर रखने वाली योनियां हैं गौ और व्याघ्र, महषि और अश्व, मृग और श्वान, सिंह और गज, मेष और वानर, मार्जर और मूषक तथा सर्प और नकुल । अश्विनी व शतभिषा नक्षत्रों की योनि अश्व स्वाति व हस्त की महिष धनिष्ठ व पूर्वाभाद्रपद की सिंह, भरणी व रेवती की गज कृत्तिका व पुष्य की मेष, श्रवण व पूर्वाषाढ़ा की वानर अभिजित व उत्तराषाढ़ा की नकुल मृगशिरा व रोहिणी की सर्प ज्येष्ठ व अनुराधा की सर्प, मूल व आर्द्रा की श्वान पुनर्वसु व आश्लेषा की मार्जार मघा व पूर्वफाल्गुनी की मूषक विशाखा व चित्रा की व्याघ्र तथा उत्तरभाद्रपद व उत्तरफाल्गुनी की गौ योनि होती है। पूर्वोक्त नाम चंद्रकला का नक्षत्र रेवती और योनि गज है। जगदीशचन्द्र का नक्षत्र उत्तराषाढ़ा और योनि नकुल है। गुणबोधक चक्र में देखा तो गुण मिले दो(2) योनि गुण-बोधक चक्र __ वर की योनि कन्याकी अश्व गज मेष सर्प श्वान मार्जार मूषक गौ महिष व्याघ्र मृग वानर नकुल सिंह अश्व 4 2 3 2 2 3 3 30 1 3 2 2 1 गज 2 4 3 2 2 3 3 3 3 1 3 2 2 0 मेष 3 3 4 2 2 3 3 3 0 1 30 2 1 सर्प 2 2 2 4 2 1 1 2 2 2 2 1 0 2 श्वान 2 2 2 2 4 1 2 2 2 2 0 2 2 2 मार्जर 3 3 3 1 1 4 0 3 3 2 3 2 2 2 मूषक 3 3 3 1 2 0 4 3 3 2 3 2 1 1 गौ. 3 3 3 2 2 3 3 4 3 0 3 2 2 1 महिष 0 3 3 2 2 3 3 3 4 1 1 2 2 1 व्याघ्र 1 1 1 2 2 2 2 1 1 4 1 2 2 1 मृग 3 3 3 2 0 3 2 3 3 1 4 2 2 3 वानर 2 2 0 1 2 2 2 2 2 2 2 4 2 2 नकुल 2 2 2 0 2 2 1 2 2 2 2 2 4 2 |सिंह 1 0 1 2 2 2 2 1 1 2 1 2 2 4 NW NW WOW wwwNN ANN - - - - NNN -० 150

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