Book Title: Saptabhangi Tarangini
Author(s): Vimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३० सर्वथा निवृत्ति न करके अनेकान्त पक्षके सूचनार्थ ' स्यात् अस्ति एव घटः' यहांपर स्यात्कारका प्रयोग किया है । क्योंकि स्यात्कारके ही आधीन एवकारके अर्थके एक देश अभावमें प्रतियोगिवैयधिकरण्य यह पद पूर्वनिविष्ट किया गया है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्याच्छब्दस्य चानेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु सम्भवत्सु इह विवक्षावशादनेकान्तार्थो गृह्यते । अनेकान्तत्वं नामानेकधर्मात्मकत्वम् । अन्तशब्दस्य घटादावभेदेनान्वयः । तथा चानेकधर्मात्मको घटस्तादृशास्तित्ववानितिबोधः । 1 यद्यपि अनेकान्त विधि, विचार आदि अनेक अर्थ स्यात्कारके संभव हैं तथापि यहां वक्ताकी विशेष इच्छासे अनेकान्तार्थका वाचक ही स्यात्कार शब्दका ग्रहण है । अनेकान्त इस शब्दका अर्थ अनेक धर्मस्वरूप है और अनेकान्तमें जो अन्त शब्द है उसका घट आदि शब्द में अभेद सम्बन्धसे अन्वय होता है तो अनेक धर्मात्मक घट अथवा अनेक धर्मस्वरूप अस्तित्ववान् घट ऐसा अर्थ ' स्यादस्त्येव घट:' इस वाक्या होता है ॥ न च स्याच्छब्देनैवाने कान्तस्य बोधनेऽस्त्यादिवचनमनर्थकमिति वाच्यम् । स्याच्छब्देन सामान्यतोऽनेकान्तबोधनेऽपि विशेषरूपेण बोधनायास्त्यादिशब्दप्रयोगात् ॥ स्यात् शब्दसे ही जब अनेक धर्मस्वरूप घट ऐसा बोध होगया तब अस्तित्व आदिका कथन व्यर्थ है ? ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि स्यात् शब्दसे सामान्यरूपसे अनेकान्त पक्षका बोध होने पर भी विशेष रूपसे बोध करानेकेलिये अस्तित्व आदि शब्दों का प्रयोग आवश्यक है । तदुक्तम् - ऐसा कहा भी है "स्याच्छन्दादप्यनेकान्तसामान्यस्यावबोधने । शब्दान्तरप्रयोगोऽत्र विशेषप्रतिपत्तये ॥ " इति ॥ “सामान्यरूपसे स्यात् शब्दसे अनेकान्तरूप अर्थका बोध होनेपर भी विशेषरूपसे अर्थका बोध करानेकेलिये वाक्यमें अस्तित्व आदि अन्य शब्दोंका प्रयोग करना आवश्यक है" ॥ यथा-वृक्षो न्यग्रोधः, इति वृक्षत्वेन रूपेण न्यग्रोधस्य बोधनेऽपि न्यग्रोधत्वेन रूपेण न्यग्रोधबोधनाय न्यग्रोधपदप्रयोगः । स्याच्छब्दस्य द्योतकत्वपक्षे तु न्यायप्राप्त एवास्त्यादिप्रयोगः । अस्त्यादिशब्देनोक्तस्यानेकान्तस्य स्याच्छब्देन द्योतनात् । स्याच्छन्दाप्रयोगे सर्वथैकान्तव्यवच्छेदेनानेकान्तप्रतिपत्तेरसम्भवात् एवकारावचने विवक्षितार्थाप्रतिपत्तिवत् । जैसे 'वृक्षो न्यग्रोधः' वृक्ष वट इस उदाहरणमें वृक्षत्व इस सामान्यरूपसे वटका बोध होनेपर भी न्यग्रोधैत्व इस विशेषरूपसे न्यग्रोधका बोध करानेके लिये न्यग्रोध इस शब्दका प्रयोग किया गया है । और स्यात् शब्दके द्योतकत्वपक्षमें तो अस्ति आदि शब्दों का प्रयोग करना वाक्यमें न्यायसे प्राप्त है क्योंकि अस्ति आदि शब्दोंसे १ संयुक्त. २ साधारण. ३ वटल. ४ वट. For Private And Personal Use Only

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