Book Title: Sanshay Timir Pradip
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Swantroday Karyalay

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Page 173
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। को में सैकड़ो जगहें यह बात लिखी हुई मिलेगी कि अमुक राजा के दूत का अमुक नृपति ने यथेष्ट सत्कार किया। तथा हम लोगों में भी यह बात अभी भी प्रचलित है कि हमारे यहां आये हुवे अतिथी के सत्कार के साथ में उनके साथ में आये हुवे भृत्यवर्गों का सत्कार किया जाता है फिर जिनदेव के सेवकवर्गों ने ही क्या बड़ा भारी पाप किया है जिससे वे सत्कार के पात्र ही नहीं रहे । प्रश्न--यह कहना ठीक नहीं है। किन्तु जो समन्तभद्रस्वामि ने लिखा है किः भयाशास्नेहलोभाच कुदेवागमलिंगिनाम् । प्रणामं विनयं चैव न कुर्युः शुद्धदृष्टयः ॥ इस श्लोक के अनुसार अपनी प्रवृति करनी चाहिये। पद्मपुराण में किसी जगह यह लिखा हुआ है कि राजा वज्रकर्ण ने यह प्रतिज्ञा की थी कि मैं कुदेवादिको को कभी नमस्कार नहीं करूंगा इत्यादि इसी प्रतिज्ञा की बड़ी भारी प्रसंशा की गई है । अथवा तुम्ही कहो यह बात ठीक है या नहीं? उत्तर समन्तभद्रस्वामि ने जो कुछ लिखा है वह तो ठीक है परन्तु उसका तात्पर्य यह नहीं है । कुदेवादिकों का निषेध उस श्लोक से होता है शासन देवताओं का नहीं। दूसरे वज्रकर्ण का दृष्टान्त भी ठीक नहीं है क्योंकि बज्रकर्ण ने जिस तरह की प्रतिमा की थी उसी तरह उसका निर्वाह भी किया था। अपनी सहाय के करने वाले महाराज रामचन्द्र कोभीनमस्कार नहीं किया था। परन्तु हमारी दशा For Private And Personal Use Only

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