Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

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Page 93
________________ ( ६४ ) फुट नोट नं ५ केवल थोड़े से विचारनेमे यह विदित हो जायगा कि यह दर्शन शास्त्र न तो हर्षदायक तौर पर निर्माण किये गये हैं और न वह वैज्ञानिक अथवा सैद्धान्तिक शुद्धता से लक्षित हैं । प्रारम्भ में ही वह सैद्धान्तिक दृष्टि (नय) वादको भुला देते हैं और बहुत करके प्रमाणकी किस्मों और ज़रायोंसे अपनी अनभिज्ञताको प्रगट करते हैं । उनकी तत्त्व- गणना भी अवैज्ञानिस और भ्रमपूर्ण है। सैद्धान्तिक दृष्टिसे देखते हुये विद्वान हिन्दू भी इस बात को मानने पर वाध्य हुये है कि उनके हों दर्शनों में से कोई भी सिद्धान्तानुकूल ठीक नहीं है । निम्न लेख, जो कि ' सक्रड वुक्स औफ दि हिन्दूज' की नवीं पुस्तककी भूमिकासे उद्धृत किया गया है, हिन्दू भावोंका एक अच्छा नमूना है: । "वह (विज्ञान भिक्षु जो साख्यदर्शन पर एक प्रसिद्ध टिप्पणी टीकाकार है) इस वातको जानता था कि छह दर्शनों में से काई भी... जैसे कि कई बार हम पहिले अनुसार पूर्वीय ..... कह चुके हैं पश्चिमीय विचार के सद्धान्तिक ढंगका दर्शन न था बल्कि वे केवल एक प्रश्नो-तरीके सदृश हैं, जिनमें कि सृष्टि उत्पत्ति संवधमें ही वेदों और उपनिषदोंके किसी २ सिद्धान्तको तर्क वितर्क रूपमें एक विशेष प्रकार के शिष्योंका बताया है उनको संसारके गूढ़ विषयोंको समझाये विना हो, कि जिनको वे अपनी मानसिक और प्राध्यात्मिक कमियोके कारण समझने की योग्यता नहीं रखते थे ।" .......

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