Book Title: Samyaktva Sara Shatak
Author(s): Gyanbhushan Maharaj
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 403
________________ मोक्षमार्ग-सूत्र १६७ ( ३१५ ) जब (अन्तरात्मा पर से )प्रज्ञानकालिमाजन्य कर्म-मल को दूर कर देता है, तब सर्वत्रगामी केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है। जव सर्वत्रगामी केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है, तव जिन तथा केवली होकर लोक और प्रलोक को जान लेता है। __ जव केवलज्ञानी जिन लोक प्रलोकरूप समस्त ससार को जान लेता है, तव (आयु समाप्ति पर) मन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति का निरोधन कर शैलेशी (अचल-अकम्प) अवस्था को प्राप्त होता है । (३१८) जव मन, वचन और शरीर के योगो का निरोधन कर मात्मा शैलेशी अवस्था को पाती है-पूर्णरूप से स्पन्दन-रहित हो जाती है, तव सव कर्मों को क्षय कर-सर्वथा मल-रहित होकर सिद्धि (मुक्ति) को प्राप्त होती है। (३१६) जव आत्मा सब कर्मों को क्षय कर-सर्वथा मलरहित होकर सिद्धि को पा लेती है, तव लोक के मस्तक पर-ऊपर के अन्य भागपर स्थित होकर सदा काल के लिए सिद्ध हो जाती है।

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