Book Title: Samyaktva Parakram 04 05
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 412
________________ ३८२-सम्यक्त्वपराक्रम (५) जो वीतराग हैं उन्हे किसी के प्रति राग-द्वेप नहीं होता । इस कारण वीतराग वाणी सदा सत्य, शिव पोस सुन्दर होती है । सराग और सदाप व्यक्ति के धचनो में अपूर्णता हो सकती है, वीतराग देव की वाणी में अपूर्णता के लिए कोई स्थान नही। अगर वीतराग-वाणी को यथावत् समझने की बुद्धि तुममे नही है तो यही कहो कि वीतराग भगवान् ने जो कुछ कहा है वही सत्य है इस प्रकार वीत. राग-वाणी को तुम सत्य, शिव और सुन्दर मानोगे तो निश्चित रूप से प्राराधक बन सकोगे श्रीर आत्म-कल्याण साध सकोगे। प्रस्तुत अध्ययन में भगवान् ने जो कुछ कहा है, वह कोई विवाद का विषय नही है । वह तो आचरण करने का विपय है । भगवद्-वाणी पर अमल करने वाला पुरुष स्व-पर का कल्याण साध सकता है। अतएव तुम किसी प्रकार वादविवाद में पड़े बिना ही भगवान् की वाणी के अनुसार व्यवहार करो। इसी में तुम्हारा कल्याण है। वादविवाद करने से न वस्तु का निर्णय ही होता है। और न वादविवाद का अन्त ही माता है । जिसमे जितनी ज्यादा बुद्धि होगी वह उतना ही अधिक वादविवाद कर सकेगा और वाद विवाद करते-करते जीवन ही समाप्त हो सकता है । अतएव वाद विवाद में न पडकर भगवान् के निर्दिष्ट मार्ग पर चलने मे ही सम्यक्त्वपूर्वक पराक्रम करना चाहिए । निस्पृह होकर अपने आत्मा की तराजू पर भगवान् की वाणी तोलोगे तो भगवान के वचन की सत्यता प्रतीत हुए बिना नहीं रहेगी । आत्मा स्वयं ही सत्य-असत्य तोलने के लिए तराजू है । अगर आत्मा कुटिलता का त्याग करके

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