Book Title: Samyaktva Mul Bar Vratni Tip
Author(s): Udyotsagar Gani
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३)
कृत्य थयाथी जेमने कोई साधननी न्यूनता रही नथी; जे मनी निर्विकारी शान्त मुखा जोवाथी काम, क्रोध, लोज अने मोहादिक अनादिना दोष मटे, अंतरमा संवरनी शैली प्रगटे, जेना वचन सांजलतांज अनादिनी मिथ्या चम नूल मटे जे श्रीअरिहंतजी चारे निदेपे सकल जीवने हितकारी जे.
चार निदेपा ते आ प्रमाणे. प्रथममान निदेपोएटले श्रीअरिहंतजीनाम जाणवू. जेम नमो अरिहंताणं एटबुं नाम मात्र आराधवाश्री अनंतजीवमुक्ति पाम्या. - बीजो स्थापना निदेपो एटले जे श्रीअरिहंतजी सकल दोषना चिन्होए रहित, निरुपम, सहज सुनग,समचतुरस्त्र संस्थानीय एवं जे पद्मासन काउस्सग मुखाते जिन बिंब तेने श्रीअरिहंतजीनो स्थापना निदेपो कहिए. ते निःकामी लोकोत्तर स्थापनारूप जिन मुखानां दर्शने करी सेवा अर्चाए करी अनंत जीव मुक्ति पाम्या.
त्रीजो अव्य निक्षेपो ते आवीरीते के, जेणे जिन पद निकाच त्त कमु, पण पाम्यानथी, अने आगल जिनेश्वर थशे एवो जे जीव तेने अव्य अरिहंत कहिए. एना नावी गुणतुं नूत काले उपचार करीने वंदन, नमन, स्मरण, पूजन अने स्तवन करतां पण अनेक जीव मुक्ति पाम्या. __ चोथो नाव निक्षेपो एटले आप जगत उकरण समर्थ, चवन जन्मादि कल्याणक महोत्सव पूर्वक उत्तम कुलमां अवतार पामी ने, नोग कर्म सीम उदय अव्यापक रीते जोग विघ्न मटाडीने लोकांतिक देवकृत संकेत अवसरे वरसीदान सवा पहोरसुधी नि त्ये देश करीने, संयम ग्रहीने सम्यक्झान क्रियावडे चारे घनघाती कर्म क्षय करीने केवल ज्ञान पामे, ए वखत चलीताशन, चोसठे इंड सपरिवार आवी करीने अष्ट महाप्रातिहार्य युक्त समवसरण बनावे अहींयां रत्नमय सिंहासन उपर बेसीने निरवद्य देशनावडे

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