Book Title: Samyak Achar Samyak Vichar
Author(s): Gulabchandra Maharaj, Amrutlal
Publisher: Bhagwandas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 333
________________ श्री तारणस्वामी सम्यक् विचार तृतीय धारा (कमलबत्तीमी) तत्वं च परम तत्वं परमप्पा, परम भाव दरमीए । परम जिनं परमिस्टी, नमामिहं परम देवदेवस्य ॥१॥ तत्वों में जो तत्व परम हैं, भाव परम दरशाते । परम जितेन्द्रिय परमेष्ठी जो, परमेश्वर कहलाते ॥ सब देवों में देव परम जो, वीतराग, सुख-साधन । ऐसे श्री अरहन्त प्रभू को, करता मैं अभिवादन ॥ जो तत्त्वों में परम तत्व परमात्म स्वरूप जो आत्माएँ श्रेष्ठतम भावों को प्राप्त कर चुकी हैं, ऐसी उन आत्माओं को जो पंच परमेष्ठी पद धारी देवों के द्वारा भी वंदनीय है उन्हें मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करता हूँ । यह आदि मंगल श्री तारन स्वामी ने किया है, यह नमस्कार व्यक्तिवाचक नहीं, गुणवाचक है। 'जैनधर्म में व्यक्ति की नहीं, गुणों की ही मान्यता की गई है ।' बस यहीं से अध्यात्मवाद और इसके विपरीत मान्यताओं में जड़वाद का सिद्धान्त बन जाता है। .......................

Loading...

Page Navigation
1 ... 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353