Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग-3
कषाय की उपशान्तता, मात्र मोक्ष अभिलाष भव में खेद अन्तरदया वह कहिये जिज्ञास
ऐसा जिज्ञासु आत्मार्थी जीव, मोक्ष के साधन की मीमांसा करता है, अन्तर में गहरा विचार करके निर्णय करता है, भेदज्ञान करता है। अरे जीव ! अन्तर में गहरा उतरकर एक बार खोज तो कर, तुझे तेरे मोक्ष का साधन तुझमें ही दिखेगा ।
(समयसार) 294 वीं गाथा की टीका में आचार्यदेव ने भगवती प्रज्ञा को ही मोक्ष के साधनरूप से वर्णन करके, पश्चात् उस पर कलश भी अलौकिक चढ़ाया है; तीक्ष्ण प्रज्ञाछैनी किस प्रकार आत्मा और बन्ध को अत्यन्त पृथक् कर डालती है, उसके पुरुषार्थ का अद्भुत वर्णन 181 वें कलश में किया है ।
(स्नग्धरा)
प्रज्ञाछेत्री शितेयं कथमपि निपुणैः पातिता सावधानैः सूक्ष्मेऽतः संधिबंधे निपतति रभसात् आत्मकर्मोभयस्य । आत्मानं मग्नमंतः स्थिर विशदलसत् धाम्नि चैतन्यपूरे बंधं चाज्ञानभावे नियमितमभितः कुर्वती भिन्नभिन्नौ ॥१८१ ॥ इस कलश का भेदज्ञान प्रेरक प्रवचन आगामी लेख में पढ़ें ।
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