Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

View full book text
Previous | Next

Page 287
________________ आणं सीसेण पडिच्छिऊण, सिरिइंदभूइणो सम्मं । रायरिसिं महसेणं, उवट्ठिया पत्थुयत्थकए तो तेहिं परिगओ सो, गओ व्व अण्णेहिं भद्दजाईहिं । सुथिरेहिं सुदंतेहिं, महागएहिं व रायंतो सणियं सणियं पयपंकयाई, नमिऊण गोयमस्स गओ। पुव्वपडिलेहियम्मि, सिलायले बीयतसरहिए तत्थ य पुव्वपवंचिय-विहिपुव्वं विहियसेसकायव्वो। वोसिरइ सव्वमऽसणं, चउव्विहं पि हु महासत्तो थेरा वि तस्स पुरओ, संवेगपराई पसमसाराई । सत्थाई महत्थाई, परियटेउं समारद्धा अह सुसमाहियमणवयण-कायजोगस्स धम्मझाइस्स । तस्स सुहदुक्खजीविय-मरणाऽऽइस तल्लचित्तस्स राहावेहसमुज्जय-मणुयस्स व दूरमऽप्पमत्तस्स । आराहणाविहाणे, पयत्तओ बद्धलक्खस्स अच्वंतथिरत्तं पेहिऊण, ओहीए रंजिओ बाढं । सोहम्मि तियसनाहो, सभागओ भणइ निययसुरे हंहो ! पेच्छह पेच्छह, निययथिरत्तेण विजियसुरसेलं । साहुमिमं वटुंतं, निच्चलचित्तं समाहीए मण्णे पलउब्भवपबल-पवणपक्खोलणाऽऽउलजलोहा । जलनिहिणो वि हु मेरं, मुयंति न इमो नियपइण्णं निच्चाऽवट्ठियरूवा वि, कि पि पावित्तु वत्थुणो हेडं। भिंदंति च्चिय नियय-व्ववत्थमेसो न पुण साहू जे करयलम्मि लीलाए, ले गणणाए सयलकुलगिरिणो । धारिन्ति सिंधुणो वि हु, सोसेंति निमेसमेत्तेण ते विहुमण्णे तियसा, अतुल्लबलसालिणो इमस्स धुवं । न चिरेण विखोभेठ, पारेति मणो मणागं पि चोज्जमिणं एत्थ जए, जायंति के वि ते महासत्ता। जेसि महिमाऽवध्यं, असारभूयं तिहयणं पि इयजंपिरसुरवइवयण-मऽलियबुद्धी असद्दहेमाणो। एक्को सुरो सरोसं, चितेउमिमं समाढत्तो बालाणं व पहूण वि, वयणाइं जहा तहा पयद॒ति । वत्थुसतत्तपरामरिस-मऽणुयमित्तं पि न कुणंति कहमऽण्णहा महाबल-कलिएहि वि एस खोहिउंन जई । तीरइ सुरेहिं एवं, वएज्ज सक्को इह विसंकं अहवा किमऽणेण विगप्पिएण, सयमेव तं मुणि गंतुं । खोभेमि झाणाओ, करेमि हरिणो गिरं वितहं ताहे गईए मणपवण-विजइणीए तओ विणिक्खंतो । महसेणमुणिसमीवे, पत्तो य निमेसमेत्तेण उप्पाइओ य पलइ व्व, दारुणो विजुपुंजदुप्पेच्छो । अयसीकुसुमच्छाओ, सव्वत्तो मेहसंघाओ मुसलोवमाहिं नीरंध-भावबद्धंऽधयारघोराहि । धाराहिं तक्खणं चिय, पासे वरिसेउमाऽऽरुद्धो उब्भडसलिलुप्पीडेहि, पूरियं दंसिऊण दिसिवलयं । निज्जमगमुणिम्मि संकमित्तु महसेणमुल्लवइ हंभो ! किण्ण पलोयसि, सव्वत्तो पसरमाणसलिलेण । गयणऽग्गलग्गसिहरा वि, गरुयगिरिणो वि हीरंति दीहरजडाकडप्पो-त्थइयधरामंडला वि दुमनिवहा । उम्मूलिया जलेणं, पलालपडलं विव लुलंति किम्वा न नियच्छसि वोम-विवरपसरंतवारिपूरेहि। तारानियरो वि फुडं, तिरोहिओ नज्जइ न सम्म इय एरिससलिलमहा-पवाहवेगेण वुब्भमाणस्स । तुह अम्हाण वि एत्थं, न जाव संपज्जए मरणं तावेत्तो ओसरिउं, जुज्जइ मुणिवसह ! मुयसु मरणरुइं । जत्तेण रक्खणिज्जो, अप्पा हु सुये जओ भणियं "सव्वत्थ संजमं संज-माउ अप्पाणमेव रक्खंतो । मुच्चइ अइवायाओ, पुणो विसोही न याऽविरई" न य अम्हारिसमुणिजण-विणाससंभूयभूरिपावाओ । एत्थ ट्ठियस्स थेवं पि, अत्थि मोक्खो धुवं तुज्झ जम्हा तुज्झ कएणं, अम्हे इह भद्द ! आवसामो त्ति । इहरा जीविउकामो, वसेज्ज किं को वि जलमज्झे इय साहुवयणमाऽऽयण्णि-ऊण थोयं पि अविचलियचित्तो। महसेणो रायरिसी, परिभावइ निउणबुद्धीए को एसो पत्थावो, घणस्स कह वा इमो महासत्तो। साहू दूरं अणुचिय-मेवं जंपेज्ज दीणमणो अच्वंतमेवमऽघडंतमेव, उवसग्गिउं ममं मण्णे । भावं परिक्खिउं वा, केणइ असुराऽऽइणा विहियं साहावियं जइ पुण, भवेज्ज ता दिट्ठसव्वट्ठव्वो । गोयमसामी न ममं, थेरे य इहाऽणुमण्णेज्जा ता जइ विहु होयव्वं, सुराऽऽइदुव्विलसिएण केणाऽवि। हे हियय! तहवि पत्थुय-पओयणे निच्चलं होस जइ ताव निहाणाऽऽइसु, गिव्हिज्जंतेसु होंति वच्चूहा । परमट्टसाहगे कह, ण होंति ता उत्तिमट्टम्मि ॥ ९८८८॥ ॥९८८९॥ ।। ९८९०॥ ॥ ९८९१॥ ॥ ९८९२॥ ॥९८९३॥ ॥ ९८९४॥ ॥ ९८९५॥ ॥९८९६॥ ॥ ९८९७॥ ॥९८९८॥ ॥ ९८९९ ॥ ॥ ९९००॥ ॥९९०१॥ ॥ ९९०२॥ ॥ ९९०३ ॥ ॥ ९९०४॥ ॥ ९९०५॥ ॥ ९९०६॥ ।। ९९०७॥ ॥ ९९०८॥ ॥९९०९॥ ।। ९९१०॥ ॥९९११॥ ॥ ९९१२॥ ॥ ९९१३ ॥ ॥ ९९१४ ॥ ॥ ९९१५ ॥ ॥ ९९१६॥ ॥९९१७॥ ।। ९९१८॥ ॥ ९९१९ ॥ ॥ ९९२०॥ ॥ ९९२१॥ ॥ ९९२२ ॥ ॥ ९९२३॥ ૨૮૦

Loading...

Page Navigation
1 ... 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378