Book Title: Sammadi Sambhavo
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 12
________________ आचार्य भगवन्तों, श्रुतधारकों आदि को नमन किया है। कवि ने काव्य की गति के लिए माँ सरस्वती के अनेक नाम देकर स्तुति की है। उसे भी, भारती, भाषा, भास्वरी सुरेशी, शारदा आदि प्रचलित नामों के अतिरिक्त कई नाम स्वदृष्टि से बना दिये। सम्मदी सम्मदी सारा, समया सुद-अंगिणी। सुण्णाणी सुद-दायण्हू, सुकव्वा कव्वमंथिणी॥ 1/40॥ सरस्वती के नामों से सम्बन्धित 13 गाथाएँ हैं जो सभी अनुष्टप छन्द में हैं। इसी तरह इसमें सज्जन-दुर्जन आदि का वर्णन किया है। इसमें कथाओं के अनेक प्रकार हैं। उसमें इस प्रबन्ध-कथा को सन्मतिदायक कहा है। णिच्छयो सम-मग्गो सो, कव्वे मे सम्मदी जगे। (1/71) कहते हुए इसे विराग परिणामी काव्य कहा है। द्वितीय सन्मति में परिवार परिवेश का चित्रण है। तृतीय में जन्म, नामकरण, जिनगृह प्रवेश, जिनदर्शन एवं सामान्य लौकिक शिक्षा का कथन है चतुर्थ में शिक्षा अनुशासन, पुराकला, ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार करना शासकीय सेवा, सम्मेदशिखर यात्रा, मुनिभाव एवं मुनिदीक्षा का उल्लेख है। पंचम सन्मति में प्रथम चातुर्मास मधुवन का उल्लेख है। इसी में ज्ञान, ध्यान और तप के विविध कारणों पर प्रकाश डाला है। इसी चातुर्मास के पश्चात् मांगीतुंगी यात्रा, चातुर्मास एवं श्रवणवेला की यात्राओं का वर्णन है। छठे सम्मदि में हुम्मच चातुर्मास, कुंथलगिरि, मांगीतुंगी चातुर्मास आदि के साथ आचार्य पदारोहण विधि भी इसमें दी गयी है। सप्तम सन्मति में ध्यान एवं संसार के कारणों पर प्रकाश डालते हैं। विविध यात्राओं का भी विवेचन है। अष्टम सन्मति में नागपुर, दाहोद, लुहारिया, पारसोला, रामगंज मंडी चातुर्मास, जयपुर, दिल्ली, फिरोजाबाद, टीकमगढ़ आदि के चातुर्मासों का विधिवत उल्लेख के साथ-तीर्थस्थानों के गमन, उनकी यात्राएँ एवं वहाँ पर कृत तपों का उल्लेख है। दशम सन्मति में चम्पापुरी का चातुर्मास, वाराणसी चातुर्मास आदि के श्रद्धायुक्त भावों का मनोहारी चित्रण है। ग्यारहवें में छतरपुर चातुर्मास एवं द्रोणगिरि, कुंडलपुर, सिद्धवरकूट आदि तीर्थस्थानों की वन्दना को प्राप्त संघ की चर्या भी दी है। बारहवें में नरवाली, उदयपुर, खमेरा एवं मुम्बई के चातुर्मास के साथ उनके द्वारा कृत तप-ध्यान आदि की प्रभावना भी दी गयी है। तेरहवें में लासुर्णे, ऊदगाँव, कुंजवन एवं इचलकरंजी आदि के चातुर्मासों का उल्लेख है। चौदहवें में कोल्हापुर चातुर्मास (2010) (अन्तिम चातुर्मास) का वर्णन है पन्द्रहवें सन्मति में मुनि अवस्था, शिष्य परम्परा, पंचकल्याणक आदि का यथोचित निरूपण है। प्रस्तुत महाकाव्य और उसका मूल्यांकन : कवि हृदय जो भी लिखता है, कहता या चरित्र-चित्रण करता है, उसमें अलंकर, रस, छन्द, भाषा, भाव, अभिव्यक्ति, गुण आदि अवश्य होते हैं। सम्मदि-सम्भवो काव्य में वह सभी है। यह काव्य दस

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