Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Gyanendra Bafna
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 53
________________ जानवर हैं तो विकार रूपी अनेक भंवर भी हैं जिनके गर्त में फंस कर .. आत्मा अनन्तानन्त काल से भटक रही है। साधना पथ की ओर अभिमुख आत्मा बीच में ही रह जाती है। ऐसे विकट समुद्र को पार करना साधारग साधक का काम नहीं है। तीर्थंकर भगवान ने इस समुद्र में भयमुक्त चार टापू-स्थान निश्चित किये हैं जो चार तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हैंसाधु. साध्वी, श्रावक व श्राविका । यह चतुर्विध तीर्थ संसार समुद्र के कर्म प्रवाह से वचने के लिये द्वीप के समान है। ५. सयं-संवृद्धाणं (स्वयं बुद्ध)--साधारण साधकों को प्रतिबोध के .. लिये किसी निमित या गुरु की आवश्यकता होती है। उन्हें जीवन विकास .. में योग्य मार्गदर्शक के नेतृत्व की आवश्यकता होती है। किन्तु तीर्थंकर भगवान विशिष्ट व्यक्तित्व के धारक होते हैं । अतः उन्हें किसी निमित्त या गुरु की अपेक्षा नहीं होती। वे स्वयं समय पर मोहनिद्रा से जागृत हो उत्थान की ओर अग्रसर हो जाते हैं। वे अपनी राह स्वयं ढूंढते हैं। इसलिये उन्हें स्वयंसंबुद्ध अर्थात् स्व से ही बोध प्राप्त कहा गया है । ६. पुरिसुत्तमाणं (पुरुषोत्तम)-तीर्थंकर भगवान. सर्वोत्तम पुरुष हैं । कोई भी संसारी व्यक्ति उनके समकक्ष नहीं होता। अन्तर और वाह्य दोनों ही दृष्टि से वे श्रेष्ठ व ज्येष्ठ हैं। तीर्थंकर भगवान के शरीर पर १००८ दिव्य उत्तम लक्षण होते हैं। उनका शरीर सर्व रोगों से विमुक्त, देदीप्य'- मान, सुगन्धित व अनुपम होता है उनके सौंदर्य की सानी और कौन कर सकता है ? निश्चय ही वे अद्वितीय एवं अनुपम हैं। ... ..७. पुरिससीहाणं (पुरुषसिंह)-विश्व में सिंह सर्वदा ही अपने बल पराक्रम एवं निर्भयता के लिये प्रख्यात रहा है। अन्य कोई प्राणी उसकी वरावरी नहीं कर सकता। इसी प्रकार तीर्थंकर भगवान भी अनन्त आत्मवल के धनी हैं। अहिंसा, अपरिग्रहं व अनेकांत उनके आत्मिक अस्त्र हैं। कोई भी व्यक्ति उनके इस बल के आगे मुकाबला करने का साहस नहीं कर सकता। उनके मन में न तो कोई भय है और न ही खतरा। अतः वे निर्भय निर्द्वन्द हो विचरण करते हैं। इन दो गुणों के कारण ही उन्हें सिंह की उपमा दी गयी है। ... ... ८. पुरिसवर-पुण्डरीयारण (पुरुषवरपुण्डरीक)-तीर्थकर भगवान को पुण्डरीक कमल की उपमा दी गयी है। तीर्थंकर भगवान कमलवत् संसार समुद्र के कीचड़ से निलिप्त सदा शुचि-स्वच्छ रहते हैं। फिर पुण्डरीक कमल जिस प्रकार अन्यान्य कमलों की अपेक्षा सौन्दर्य व सौरभ में अतीव उत्कृष्ट होता है, उसी प्रकार तीर्थकर भगवान मानव समुदाय के सर्वश्रेष्ठ सामायिक - सूत्र / ५३

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