Book Title: Samayik Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 332
________________ सामायिक-सूत्र का अर्थात् स्वीकृत प्रतिज्ञा के उल्लघन का भाव व्यतिक्रम है, विषयों मे प्रवृत्ति करना अतिचार है, और विषयो मे अतीव आसक्त हो जाना-निरर्गल हो जाना-अनाचार है ! यदर्थमात्रापदवाक्य-हीन, मया प्रमादाद्यदि किंचनोक्तम् । तन्मे क्षत्मिवा विदधातु देवी, सरस्वती केवल-बोध-लब्धिम् ॥१०॥ -~-यदि मैंने प्रमाद-वश होकर अर्थ, मात्रा, पद और वाक्य से हीन या अधिक कोई भी वचन कहा हो, तो उसके लिए जिन-वाणी मुझे क्षमा करे और केवल ज्ञान का अमर प्रकाश प्रदान करे । बोधिः समाधिः परिणामशुद्धिः, स्वात्मोपलब्धिः शिवसौख्यसिद्धिः । चिन्तामणि चिन्तितवस्तुदाने, त्वां वन्द्यमानस्य ममास्तु देवि ! ॥११॥ हे जिनवाणी देवी ! मैं मुझे नमस्कार करता हूँ। तू अभीष्ट वस्तु के प्रदान करने मे चिन्तामणि-रत्न के समान है । तेरी कृपा से मुझे रत्नत्रय-रूप बोधि, आत्मलीनता-रूप समाधि, परिणामो की पवित्रता, आत्म-स्वरूप का लाभ और मोक्ष का सुख प्राप्त हो! यः स्मर्यते सर्वमुनीन्द्र-वृन्दर् यः स्तूयते सर्वनरामरेन्द्रः। यो गीयते वेद-पुराण-शास्त्र : स देवदेवो हृदये ममास्ताम् ॥१२॥ -जिस परमात्मा को ससार के सव मुनीन्द्र स्मरण करते है, जिसकी नरेन्द्र और सुरेन्द्र तक भी स्तुति करते हैं, और जिसकी महिमा ससार के समस्त वेद, पुराण एव शास्त्र गाते है, वह देवो का भी आराध्य देव वीतराग भगवान् मेरे हृदय मे विराजमान होवे ! यो दर्शन-ज्ञान-सुख-स्वभावः, समस्तसंसार-विकार-बाह्यः । Gg

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