Book Title: Samay Prabhrutam
Author(s): Gajadharlal Jain Shastri
Publisher: Sanatan Jain Granthmalaya

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Page 2
________________ ग्रंथसूची। पृष्ठ संख्या १-८० १। समयप्राभृतं (अपूर्ण) तात्पर्यवृत्त्यात्मख्याति टीकाद्वयोपेतं नियमावली। १। इस ग्रंथमालामें मूल संस्कृत प्राकृत तथा संस्कृतटीकासहित दिगंबरजैनाचार्यकृत दर्शन, सिद्धांत, न्याय, आध्यात्मिक, व्याकरण, काव्य, साहित्य, पुराण, ज्योतिष गणित, वैद्यक प्रभृति सर्वप्रकारके प्राचीन ग्रंथ छपते हैं। २। इस ग्रंथमालाका प्रत्येक खंड (अंक) दश फारमसे (८० पृष्ठ से) कम नहीं होगा और प्रत्येक खंडमें एक दो या तीन से अधिक ग्रंथ नहीं रहेंगे। ३ । इस ग्रंथमाला का मूल्य १२ खंडों का सर्वसाधारण से ८) रु. प्रथम ही ले लिया जायगा किंतु नैयायिक, वैदांतिक और संस्कृत पुस्तकालयोंकी सेवामें यह ग्रंथमाला बिना मूल्य भी भेजी जायगी। परंतु पोष्टेज खर्च प्रत्येक अंक का ) या ) वी. पी. से सबको देना होगा। ४ । जो महाशय एक साथ १००) रु. भेजेंगे वे यावज्जीव स्थायीग्राहक समझे जावेंगे। परंतु मार्ग व्यय उनको भी जुदा देना होगा। ५। जो महाशय पुस्तकालयों मंदिरों, विद्यार्थियों वा विद्वानोंको वितरण करनेकेलिये ग्राहक बनेंगे उनको १००) रु. पेशगी भेजनेसे १२ खंड तक पंद्रह २ प्रति प्रत्येक खंडकी भेजी जायगी । मार्गव्यय पृथक् देना होगा। मूल्य वा पत्र भेजनेका पता-पन्नालाल जैन मंत्री-श्रीजैनधर्मप्रचारिणीसभा काशी पोष्ट-बनारस सिटी। जैनीभाइयोंसे प्रार्थना । यह ग्रंथमाला प्राचीन जैनग्रंथोंके जीर्णोद्धारार्थ व जैनधर्मके प्रचारार्थ प्रकाशित की जाती है । इसमें जो कुछ द्रव्य लाभ होगा वह भी धर्मप्रचार व परोपकारमें ही लगाया जायगा। इसकारण प्रत्येक धर्मात्मा उदार महाशयोंको चाहिये कि प्रथम तो एक २ या दो दो ग्रंथोंको छपाकर जीर्णोद्धार करे। केलिये द्रव्य प्रदान करें । दूसरे प्रत्येक मंदिरजीके शास्त्रभंडारमेंसे ग्राहक बनकर इन सब ग्रंथ. संग्रह करके रक्षा करें अथवा स्वयं ग्राहक बनकर अपने यहांके संस्कृत पढनेवाले विद्यार्थियोंको अथवा संस्कृतच अन्यमती विद्वानोंको दान देकर सत्यार्थ पदार्थोंका प्रचार करें। शास्त्रदानी महाशयोंकेलिये ही हमने पांचवां नियम बनाया है। प्रार्थी-पन्नालाल बाकलीवाल ।

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