Book Title: Samattam
Author(s): Bhanuben Satra
Publisher: Ajaramar Jain Seva Sangh

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Page 501
________________ समूकीतक्या हि। ६१श बारवरस पाहायासम की तयनलचा लिंगाया योनिलादिमदनी का माया हिमांकासही॥६२॥ स्पष्त्रष्णा एक पूजा मामलाकर इनइनमा काय स्वतिचंडार हितव [ ष्णन डिजनवर कद लोडी मोककी डा करनारीवादापुगी एगा (डायो। समक तिला लिंगये। ६४|संष्प संष्ापकः रामपमकर निमाको दिन गणपंचासायनिलाष दोनाष्ट्रता साध्याचद नमकाहनिकलकाय रतिया सदर हममकीतधर्मनामईकदा तहकावमा याची सदा॥६६॥म तांडव चंद्र रंडीवाया. कालस्कटलो तहमांगाया। समानमरीभाषी नीड़ाडसमसामा प्राण्यापा६ षटमदीना उतिसंत्राय यातला त्या वायासं पण एकदा मंडपाकर मंत्रम मानवदननंसक तह सिरिं कायस्ततितव संध्या कर भी ध्यान मान का गाना (हसमका तधमीत | मुक्या दि६ण कर मिंवली पाचाधयो: पसुतलीनायानिंगरयो । उपतर सत्य है। वटी बाज्ञामवंतनेजा ४ मतवानश्वाघसमागची तर माझा राजाहत मी तिलही मंत्र का यमराएगा सहीशी व लहइचो गत्यनी वाग का या स्वतिंसदसत्तमावाशेष्णमष्या एकत्रामा उपजश्म "एकरइनमा ७२३ पाल्पामाऊ हनुचायानामकीतव्यननवचालितयात्री च गता मा रामकता हायाध्यायक नामको तन लहशकाया । नूह ष्याय कसमका तनवाला नरिगईनामी वका ४घरणा बनावदना सायस दीवा ७४॥ मरी सायु मानवहावा गलत एंगा तारा समू कात विननवत्या हा गाया। गत्पन ही नीरधार उपागल मरीजादेवता लागकर शव‍ यः ष्पाईक समकीत त्याहावली सुरनाया. मशकाया७६: ष्णाई कसमका नजरान लाघवनुं हाय तासूरमा हिमंतावा नवून पामशकाय । ७७ ऊंच नाक गलमा च इह प्रकार: प्रर्वदनावा। न नहाना, राजालपण मी उमश्रण त्यो हो ष्णा येक । समकीतनहीजीः धमवितासवज्ञायः दमड़ीष्ट ति दा हि (लाजी। समतोमा नव्या सामाग्री सश "य" मुकतला हाय र एचिंतामणी तूणीपरपजीलही म्हारा काया सा लागी सण श्रीचली। मानवृध । इफ को जीजा नहीं समको तलबले मावि जई त्याहांडे पानाडा: जीही नास्यादत्रयीद ૪૬૨

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