Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ १५८. तुंगं न मंदराओ,आगासाओ विसालयं नथि। जह तह जयंमि जाणसु, धम्ममहिंसासमं नत्थि ।।१२।। १५९. अभयं पत्थिवा! तुभं, अभयदाया भवाहि य। अणिच्चे जीवलोगम्मि, किं हिंसाए पसज्जसि ॥१३॥ १३. अप्रमादसूत्र १६०. इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्चं इमं अकिच्चं। तं एवमेवं लालप्पमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाए ? ॥१॥ १६१. सीतंति सुवंताणं, अत्था पुरिसाण लोगसारत्था। तम्हा जागरमाणा, विधुणध पोराणयं कम्मं ॥२॥ १६२. जागरिया धम्मीणं, अहम्मीणं च सुत्तया सेया। वच्छाहिवभगिणीय, अकहिंसु जिणो जयंतीए।३॥ १६३. सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी, न वीससे पण्डिए आसुपण्णे। घोरा मुहत्ता अबलं सरीरं, भारंड-पक्खी व चरेऽप्पमत्तो॥४॥ १६४. पमायं कम्ममाहंसु, अप्पमायं तहाऽवरं। तब्भावादेसओ वावि, बालं पंडियमेव वा॥५॥ ४२ समणसुत्त - भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119