Book Title: Samadhimaran
Author(s): Rajjan Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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समाधिमरण
२१४. वही गाथा १९६८-१९८९ २१५. ते धण्णा ते णाणी लद्धो लाभो य तेहिं सव्वेहिं
आराधणा भयवदी पडिवण्णा जेहिं संपुण्णा ।। वही, १९९६. २१६. बालग्गिवग्घमहिसगयरिंछपडिणीय तेण मिच्छेहिं ।
मुच्छाविसूचियादीहिं होज्ज सज्जो हु वावत्ती ।। वही २०१२. २१७. तत्थ पढमं णिरुद्धं णिरुद्धतरयं तहा हवे विदियं ।
तदियं परमणिरुद्धं एवं तिविधं अवीचारं ॥ वही, २००६ २१८. इय सण्णिरुद्धमरणं भणियं अणिहारिमं अवीचारं ।
सो चेव जधाजोग्गं पुवुत्तविधी हवदि तस्स ॥ वही २००९. तस्स णिरुद्धं भणिदं रोगादंकेहि जो समभिभूदो ।
जंघाबलपरिहीणो परगणगमणम्मि ण समत्थो । वही, २००७. २१९. णच्चा संवट्टिज्जंतमाउगं सिग्घमेव तो भिक्खू ।।
गणियादीणं सण्णिहिदाणं आलोचए सम्मं ।। वही, २०१४. २२०. वालादिएहिं जइया अक्खित्ता होज्ज भिक्खुणो वाया।
तइया परमणिरुद्धं भणिदं मरणं अवीचारं ।। वही २०१६. णच्चा संवट्टिज्जंतमाउगं सिग्यमेव तो भिक्खू ।
अरहंतसिद्धसाहूण अंतिगं सिग्घमालोचे ।। वही, २०१७. २२१. श्रुतविहित क्रिया विशेष: इंग्यते प्रति नियतदेश एव।
चेष्टयतेऽस्यामनशनक्रियामितीङ्गिनी । अर्द्धमागधी कोश, भाग-२ पृ० - १२७
श्री रतनचंद जी म०, अमर पब्लिकेशन्स, वाराणसी, १९८८. २२२. उव्वत्तइ परिअत्तइ काइगमाईऽवि अप्पणा कुणइ । सव्वमिह अप्पणच्चिअण अन्नजोगेण धितिबलियाओ ।।
आचारांगसूत्र (शीलांक टीका), पत्रांक- २८६. २२३. अप्पोवयारवेक्खं परोवयारूणमिगिणीमरणं ।। गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), ६१. २२४. णिप्पादित्ता सगणं इंगिणिविधिसाधणाए परिणमिया ।
सिदिमारुहित्तु भाविय अप्पाणं सल्लिहित्ताणं । भगवती आराधना २०२६. २२५. परियाइगमालोचिय अणुजाणित्ता दिसं महजणस्स ।।
तिविधेण खमावित्ता सवालबुड्डाउलं गच्छं ।वही, २०२७. एवं च णिक्कमित्ता अंतो बाहिं व थंडिले जोगे ।
पुढवीसिलामए वा अप्पाणं णिज्जवे एक्को ।। वही, २०२९. २२६. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ एगे अहमंसि न मे अत्थि कोइ न याहमवि कस्सवि,
एवं से एगागिणमेव अप्पाणं समभिजाणिज्जा, लाघवियं आगममाणे तवे से अभिसमन्त्रागए
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