Book Title: Samadhi Maran Aur Mrutyu Mahotsav
Author(s): Surchand
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृत्युमहोत्सव । [१५ रागका शरणसहित संक्लेशरहित धर्मध्यानतें मरण चाहता वीतरागहीका शरण ग्रहण करूं हूं ॥ १ ॥ अब मैं अपने आत्माकू समझाऊं हूं,कृमिजालशताकीर्णे जर्जरे देहपारे । भज्यमाने न भेतव्यं यतस्त्वं ज्ञानविग्रहः ॥२॥ अर्थ-भो आत्मन् ! कृमिनिके सैकडां जालनिकरि भरया अर नित्य जर्जरा होता यो देहरूप पीजरा इसकू नष्ट होते तुम भय मत करो जाते तुम तो ज्ञानशरीर हो । भावार्थ---तुमारा रूप तो ज्ञान है जिसमें ये सकल पदार्थ उद्योतरूप हो रहे हैं अर अमूर्तिक ज्ञान ज्योतिःस्वरूप अखंड अविनाशी ज्ञाता दृष्टा है अर यह हाड मांस चामडामय महादुर्गध विनाशीक देह है सो तुमारा रूप” अत्यंत भिन्न है। कर्मके वशते एक क्षेत्रमैं अवगाहन करि एकसे होय तिष्ठै है तोहु तुमारै इनकै अत्यंत भेद है अर यो देह पृथ्वी जल अग्नि पवनके परमाणुनिका पिंड है सो अवसर पाय विखर जायगा तुम अविनाशी अखंड ज्ञायकरूप होय इसके नाश होनेते भय कैसे करो हो ॥ २ ॥ अब और हु कहै है-- ज्ञानिन् भयं भवेत्कस्यात्प्राप्ते मृत्युमहोत्सवे । स्वरूपस्थः पुरं याति देही देहान्तरस्थितिः ॥३॥ अर्थ-भो ज्ञानिन् ! कहिये हो ज्ञानी तुमको वीतरागी सम्य For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37